महाशिवरात्रि 2020: इस शिवालय में चढ़ाते हैं सिंदूर, एक बार जरूर करें दर्शन
महाशिवरात्रि 2020 के मौके पर patrika.com आपको बता रहा है मध्यप्रदेश के तिलक सिंदूर के बारे में...। यहां एक बार जरूर जाना चाहिए...।

भोपाल। मध्यप्रदेश के सतपुड़ा के जंगलों से लगे पहाड़ों में एक शिवालय ऐसा भी है जहां शिवजी को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है। कहा जाता है कि जो भी भक्त शिवलिंग पर सिंदूर का चोला चढ़ाता है, उसकी मुरादें जरूर पूरी हो जाती हैं।
होशंगाबाद जिले के इटारसी से 18 किलोमीटर दूर स्थित है यह स्थान। बताया जाता है कि यह शिवलिंग अति प्राचीन है। इस पर दूध, जल, बिलपत्र आदि चढ़ाया ही जाता है, शिवलिंग पर सिंदूर भी चढ़ाया जाता है। शिवजी को सिंदूर का तिलक लगाने या सिंदूर चढ़ाने की परंपरा से ही यहां का नाम तिलक सिंदूर पड़ गया।

भस्मासुर से बचने यहां शरण ली थी
किंवदंती है कि जब शिवजी के पीछे भस्मासुर पड़ गए थे, तो वे पीछा छुड़ाने के लिए सतपुड़ा की पहाड़ियों में ही शरण ले रहे थे। तिलक सिंदूर भी उन्हीं में से एक स्थान है। इसके अलावा उन्हें जटाशंकर में भी छुपना पड़ गया था।
माना जाता है कि तिलक सिंदूर से पचमढ़ी तक सुरंग भी बनाई गई थी।
मान्यताओं के मुताबिक यह सुरंग आज भी यहां मौजूद है, जो पचमढ़ी में निकलती है। शिवजी इसी रास्ते से पचमढ़ी गए थे।
पौराणिक महत्व है इस गुफा का
सतपुड़ा के पहाड़ों में स्थित तिलक सिंदूर का पौराणिक महत्व भी है। इसके पुख्ता प्रमाण तो नहीं मिलते हैं, लेकिन तपस्वी ब्रह्मलीन कलिकानंद कहते हैं कि यह ओंकारेश्वर स्थित महादेव मंदिर के समकालीन शिवलिंग है। यहां शिवलिंग पर स्थित जलहरी का आकार चतुष्कोणीय है, जबकि सामान्य तौर पर जलहरी त्रिकोणात्मक होती है। ओंकारेश्वर के महादेव के समान ही यहां का जल पश्चिम दिशा की ओर बहता है, जबकि अन्य सभी शिवालयों में जल उत्तर की ओर बहता है। ग्रंथों में भी भारतीय उपमहाद्वीप में इस स्थान को अनूठा माना गया है।
ढाई सौ मीटर ऊंचाई पर है मंदिर
खटामा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। तिलक सिंदूर ग्राम जमानी में है जो इटारसी से किलोमीटर दूर है। यह मंदिर ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर मौजूद है। उत्तरमुखी शिवालय सतपुड़ा के पहाड़ों में है। इस क्षेत्र में सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के पेड़ अधिक हैं। यहां छोटी धार वाली नदी हंसगंगा नदी बहती है।
मेले में पहुंचते हैं हजारों भक्त
हर साल महाशिवरात्रि के मौके पर यहां मेला लगता है। हजारों श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने और उन्हें सिंदूर चढ़ाने आते हैं। मान्यता है कि यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान शंकर को सिंदूर चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं। प्राचीनकाल से ही आदिवासियों के राजा-महाराजा इस स्थान पर पूजन करते आए हैं। इस बार भी मेले की तैयारियां शुरू हो गई है।
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