शहर में कहने को तो मेडिकल यूनिवर्सिटी खुल गई है। संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की बात की जाए तो सैकड़ों लोग अब भी अच्छे इलाज के लिए परेशान होते नजर आते हैं। डॉक्टरों से लेकर अन्य सुविधाओं की दरकार है, जिसके लिए राजनीतिक से लेकर प्रशासनिक मजबूत इच्छा शक्ति की आवश्यकता है।
स्वास्थ्य सेवा
अस्पताल -पद स्थिति -पदस्थ चिकित्सक
विक्टोरिया ७१ ४४
सीएचसी,पीएचसी ६९ ३२
अर्बन हेल्थ सेंटर ०९ ०६
सीएचसी एवं पीएचसी २२
गरीबी से मुक्ति – जिले में गरीबी अभिशाप की तरह पीछा नहीं छोड़ रही है। चार लाख परिवार राशन दुकान के सहारे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मनीष शर्मा के अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अभाव में सरकारी मदद के बाद भी गरीबी दूर नहीं हो सकती। गरीबों के लिए सस्ते मकान बनाने व सुविधाएं उपलब्ध कराने भर से वे आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होंगे।
भुखमरी से मुक्ति- शहर में सार्वजनिक स्थलों, अस्पताल, धर्मशाला में पांच रुपए की दीनदयाल थाली योजना का उद्देश्य भुखमरी की समस्या से निजात दिलाना है। इसके बावजूद दो हजार से अधिक लोगों का पेट भिक्षाटन पर निर्भर है। करीब ५ हजार परिवार दो वक्त की रोटी तक नहीं जुटा पाते। २० हजार महिलाएं एनिमिक और २४ हजार बच्चे कुपोषित हैं।
बेहतर स्वास्थ्य – सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज के दावे की पोल संसाधनों व डॉक्टरों की कमी खोल रही है। मेडिकल, विक्टोरिया अस्पताल में मरीजों को बेड उपलब्ध नहीं हो पाते। एल्गिन हॉस्पिटल में आईसीयू नहीं है। सुपर स्पेशलिटी, स्टेट कैंसर हॉस्पिटल, टीबी हॉस्पिटल में भी डॉक्टर कम हैं। सेवानिवृत्त डॉ. अशोक जैन के अनुसार डॉक्टरों व संसाधनों की कमी बेहतर स्वास्थ्य में बाधक है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा – जिले के स्कूलों में करीब ३००० शिक्षकों की कमी है। २५० स्कूल दो शिक्षकीय व्यवस्था में संचालित हैं। नि:शुल्क शिक्षा के अधिकार अधिनियम के बाद भी पात्र छात्र वंचित हैं। २३०० स्कूलो में ३० फीसदी में बिजली नहीं है। डीईओ एनके चौकसे ने बताया, शासकीय स्कूलों में भी स्मार्ट तरीके से पढ़ाई के लिए शिक्षकों की कमी दूर करने की कवायद हो रही है।
लैंगिक समानता – जिले में लैंगिक असमानता बढ़ती जा रही है। महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण के दावे के बीच ५ प्रतिशत ही नौकरी और स्वरोजगार कर रही हैं। शहर का एकमात्र महिला मार्केट ८ साल बाद भी संचालित नहीं हो सका। शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्यस्थल और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मानकों पर स्थिति बेहद चिंताजनक है।
स्वच्छ जल – नर्मदा तीरे होने के बाद भी शहर की ३० प्रतिशत आबादी को पानी नहीं मिल रहा है। दो दर्जन वार्डों में जलसंकट है। २३१ एमएलडी जलापूर्ति के बाद भी जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है। ४० प्रतिशत पानी लीकेज-सीपेज में बर्बाद हो रहा है। निगम के ओर से ४० एलएमडी अतिरिक्त सप्लाई और १६ टंकियों से नए वार्डों में जलापूर्ति की योजना बनाई जा रही है।
सुलभ व सस्ती ऊर्जा – प्रदेश में जबलपुर ऊर्जा की राजधानी के तौर पर जाना जाता है। सरप्लस बिजली के बाद भी लोगों को महंगी बिजली मिल रही है। सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और स्वच्छ ऊर्जा के लिए सोलर प्लांट का चलन बढ़ा है। १७ मेगावाट से अधिक क्षमता के सोलर पैनल लगाए गए हैं।आठ लाख एलईडी बल्ब और ऊर्जा बचाने वाले उपकरणों का उपयोग भी हो रहा है।
रोजगार – सतत, टिकाऊ और समावेश आर्थिक विकास एवं रोजगार बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। शहर में ७० प्रतिशत लोग बेरोजगार है। ठेका मजदूरी के नाम पर कुशल लोगों को भी कलेक्टर दर के अनुसार मानदेय नहीं मिल रहा है। शासकीय विभागों में १५ हजार लोग शोषण का शिकार हो रहे हैं। श्रम विभाग भी श्रमिकों के शोषण पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है।
उद्योग, नवोन्मेष – १९५ हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले रिछाई, अधारताल औद्योगिक क्षेत्र में ४१० इकाइयों के अलावां कहीं औद्योगिक इकाइयां स्थापित नहीं हो सकीं। उमरिया डुंगरिया में १२ इकाइयां काम कर रही हैं। हरगढ़ में ८-१० इकाइयां चालू हो सकीं। महाकोशल चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष रवि गुप्ता के मुताबिक लचीले बुनियादी ढांचे की कमी से विकास ठप है।
असमानता उन्मूलन – शहर में आर्थिक असमानता की खाई चौड़ी होती जा रही है। गरीब व वंचित वर्ग को वे सुविधाएं व मनवांक्षित संसाधन नहीं मिल रहे हैं, जिनके वे हकदार हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र तिवारी का कहना है, सामाजिक ताने-बाने में बदलाव ही इसका एकमात्र इलाज है। आमदनी के स्रोत व रोजगार के अवसर सबके लिए समान रूप से उपलब्ध कराने होंगे।
शहर और समुदाय – शहर को सुरक्षित, समावेशी बनाना होगा। शहरी सीमा का विस्तार होने के बाद भी चौड़ी सड़कें, चौराहे और सुरक्षित यातायात का अभाव है। शहर में अब भी ३५ प्रतिशत (चार लाख) लोगों के पास खुद का मकान नहीं है। सड़कों पर अतिक्रमण हो रहे हैं। सीवरेज, जल निकासी के लिए ५०० करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी नाले अधूरे हैं।
खपत-उत्पादन – शहर में स्थाई खपत और उत्पादन का संतुलन बिगड़ गया है। प्राकृतिक संसाधनों पर बेजा कब्जे हो रहे हैं। मदन महल पहाड़ी, जलस्रोतों के समुचित विकास और इस्तेमाल को लेकर कोई प्लान नहीं बना। इंजीनियर संजय वर्मा के मुताबिक प्राकृतिक संसाधनों का समुचित इस्तेमाल, पर्यावरण प्रदूषकों, जल प्रबंधन के लिए लोगों को जागरूक करना होगा।
जलवायु – शहर में पिछले ६ साल में ४० हजार से अधिक पेड़ काटे गए। पहले हरयिाली के मैप में जबलपुर देश में टॉप-१० में था। पेड़ों की कमी से जलवायु बदल रही है। सीजन शिफ्ट हो रहा है। जैव विविधता प्रभावित हो रही है। रिटायर रेंजर एबी मिश्रा ने बताया कि टीपी फ्री श्रेणी वाले पेड़ों को बिना अनुमति काटा जाता है। जबकि, वे पेड़ भी पर्यावरण में भूमिका निभाते हैं।
जल में जीवन – जिले के १५० से अधिक जलस्रोत सूख गए हैं। परियट व गौर नदी को डेयरी संचालकों ने नालों में तब्दील कर दिया। इनका पानी उपयोग के लायक नहीं रह गया है। हिरन नदी दो साल से गर्मी में सूख जाती है। ५२ ताल-तलैयों वाले शहर में ३६ तालाब बचे हैं। भूजलविद् विनोद दुबे के अनुसार तालाबों का पानी दूषित होने से बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
भूमि पर जीवन- जिले में कृषि का रकबा ४ लाख ३१ हजार ९३ हेक्टेयर है। कृषि भूमि का रकबा एक हजार एकड़ से ज्यादा घट गया। विजय नगर, धनवंतरि नगर, कछपुरा, मानेगांव, तिलवारा, ग्वारीघाट, गौर, तिलहरी, बिलहरी में कृषि योग्य भूमि का रकबा सिमट रहा है। पर्यावरणविद् एके मिश्रा के अनुसार ग्रुप हाउसिंग और बहुमंजिला इमारतों पर ध्यान देना होगा।
शांति, न्याय – शांति और न्याय व्यवस्था में संस्कारधानी की स्थिति देश के अन्य मझोले शहरों की तुलना में बेहतर मानी जाती है। यहां सैन्य, शैक्षणिक संस्थानों की बहुलता से देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोग निवास करते हैं। यहां ऑर्गेनाइज्ड क्राइम नहीं के बराबर है। अधिवक्ता संजय वर्मा का कहना है, न्याय के लिए लोगोंं में जागरुकता है।
लक्ष्य व भागीदारी – शहर के सरकारी विभागों में समग्र विकास के लिए भागीदारी का अभाव दिखता है। विभागों में खींचतान का खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है। कभी पाइप लाइन के लिए सड़क खोद दी जाती है, तो कभी रोड बनाने के नाम पर पाइप लाइन टूट जाती है। बिजली विभाग, पीडब्ल्यूडी, ट्रैफिक, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग आदि विभागों में समन्वय की कमी है।