जबलपुरPublished: Feb 04, 2019 01:13:12 am
santosh singh
तीन दिन शहर की गलियों की खाक छानने के बाद समाप्त हुआ इंतजार
19 years later, the mother got tired of seeing a son
जबलपुर. पिता की डांट पर घर छोडकऱ निकले एक बालक को अपनों से मिलने के लिए 19 साल लम्बा इंतजार करना पड़ा। तीन दिन तक शहर की गलियों की खाक छानने के बाद आखिरकार रविवार सुबह 27 साल के युवक को अपनी मंजिल मिल गई। खोए बेटे को देख मां ने उसे कलेजे से लगा लिया।
तीन दिन शहर की गलियों की खाक छानता रहा
एक फरवरी को दो दोस्त पुणे से जबलपुर पहुंचे। एक युवक को इतना ही याद था कि उसका नाम सुरेंद्र और पिता का नाम मुन्नालाल है। पिता राजगीर मिस्त्री का काम करते हैं। वह शहर में जिस स्थान पर रहता था, वहां एक बड़ा तालाब था। उसके चारों ओर घनी बस्ती थी। पहचान के तौर पर उसके पास बचपन की फोटो थी। पिता का नाम याद रखने के लिए उसने अपने नाम के साथ मुन्ना जोड़ लिया था। धुंधली यादों को समेटे सुरेंद्र अपने दोस्त रोहित उर्फ संदीप ठाकुर के साथ तीन दिन से शहर की गलियों की खाक छानता रहा। इसी दौरान वह पत्रिका कार्यालय फिर पुलिस कंट्रोल रूम पहुंचा
23 साल पुराने रेकॉर्ड खंगाले
कंट्रोल रूम में पुलिसकर्मी बालगिरि के जरिए सुरेंद्र क्राइम ब्रांच कार्यालय पहुंचा। सुरेंद्र की आपबीती सुन एएसपी शिवेश सिंह बघेल ने बालगिरि सहित आरक्षक सतीश, महिला आरक्षक प्रियंका और बीपी पटेल को उसके परिजन की खोज में लगाया। सुरेंद्र की धुंधली यादों से हनुमानताल थाना क्षेत्र की तस्दीक हो सकी। वर्ष 1997 से 2000 के बीच सात से दस साल की उम्र वाले गुम बच्चों के रेकॉर्ड खंगाले गए। हनुमानताल में 28 मार्च 2000 को अपराध क्रमांक 15/2000 पर सुरेंद्र की गुमशुदगी दर्ज मिली। पते के तौर पर सिंधी कैम्प लिखा था। पुलिस टीम सुरेंद्र को लेकर रेलवे स्टेशन से सिंधी कैम्प पहुंची। वहां पड़ोसी आकाश उर्फ गोलू सोनकर ने बताया, उसके घरवाले 10 साल पहले मकान बेचकर कठौंदा के पास न्यू जागृति नगर में शिफ्ट हो गए हैं। इसके बाद सुरेंद्र रविवार सुबह परिजन से मिल सका।
निजी संस्था में मिला ठिकाना
सुरेंद्र ने बताया, वह रूठ कर ट्रेन से पुणे चला गया था। स्टेशन पर कुछ दिन भटकने के बाद कुछ युवकों ने उसे एक निजी संस्था सर्व सेवा संघ पहुंचा दिया। वहां रहकर उसने नर्सिंग मेल की पढ़ाई की। वर्तमान में वह निजी अस्पताल में काम करता है।
चार साल पहले पिता भी हो गए लापता
सुरेंद्र के अलावा परिवार में उसकी मां सुशीला अहिरवार, चार छोटे भाई और दो बहनें हैं। पिता मुन्नालाल अहिवार चार साल पहले लापता हो गए। आठ नवंबर 2015 को उनकी गुमशुदगी माढ़ोताल थाने में दर्ज है। मां सुशीला बाई ने बताया, लोग लाख समझाते, लेकिन उसका दिल यह मानने को कभी तैयार नहीं हुआ।
रोहित की भी ऐसी ही है कहानी
सुरेंद्र के दोस्त रोहित की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वर्ष 1997-98 के आसपास साढ़े चार साल की उम्र में उसे स्कूल से अगवा कर मुम्बई ले जाया गया था। वहां मारपीट कर कई दिनों तक उससे भीख मंगवाई गई। वह अपहरण करने वालों के चंगुल से निकलकर पुणे पहुंचा। निजी संस्था सर्व सेवा संघ में उसकी मुलाकात सुरेंद्र से हुई। यादों के रूप में उसके पास स्कूल यूनिफॉर्म वाली बचपन की फोटो है। उसे इतना ही याद है कि उसका बड़ा-सा घर था। वह वाहन से स्कूल जाता था। आस-पास गन्ने की खेती होती थी।