शहर के एक-दो उद्यानों को छोड़ दिया जाए तो शेष में लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां ही नहीं हैं। सफाई नहीं होने से हर तरफ कचरा फैला हुआ है। पानी निकासी की व्यवस्था नहीं होने से हाल ही में हुई बारिश से कीचड़ मच गया है।
30 साल से नहीं हुए विकास कार्य
शैलपर्ण उद्यान को तीन दशक पहले जेडीए ने विकसित किया था। उस दौरान पहाड़ी में वृहद स्तर पर पौधरोपण करने से लेकर झूला समेत बच्चों के मनोरंजन के अन्य साधन विकसित किए गए थे। इसके बाद प्राधिकरण उद्यान का संचालन ठेके के माध्यम से करता रहा। इस दौरान जेडीए ने उद्यान को आय का जरिए तो बनाया, लेकिन विकास का कोई भी नया काम नहीं किया। 6 महीने पहले ये उद्यान जेडीए ने निगम सुपुर्द कर दिया। इसके बाद से उद्यान को संवारना तो दूर प्रवेश द्वार पर अंकित जेडीए का नाम भी नहीं हटाया गया।
भंवरताल में झूले नहीं
भंवरताल उद्यान को संवारने के नाम पर निगम ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। लैंड स्केपिंग से लेकर स्केटिंग रिंग, घास लगाने, नई बाउंड्रीवॉल व रैलिंग लगाने समेत कई काम किए गए। लेकिन शहर के बीचों बीच स्थित इस उद्यान में बच्चों के लिए झूले नहीं हैं। पहले ये उद्यान बच्चों के मनोरंजन के साधनों के लिए पहचाना जाता था।
उजड़ गया सिविक सेंटर उद्यान
सिविक सेंटर स्थित उद्यान की बदहाली देखकर शहरवासी हैरान रह जाते हैं। शहर के हृदयस्थल में मौजूद उद्यान की घास सूख चुकी है। उद्यान की रैलिंग टूट गई। जब तक उद्यान जेडीए के पास था, बेहतर रखरखाव किया गया। लेकिन उद्यान निगम को सुपुर्द किए जाने के बाद उजड़ गया।
इस सम्बंध में निगमायुक्त आशीष कुमार कहना है कि उद्यानों के बेहतर रखरखाव और आवश्यक इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।