जबलपुर

BSNL- बीएसएनएल के लिए इस शहर से उठी बड़ी बात

BSNL- कर्मचारी हितों पर चली चर्चा, तो आए बड़े मुद्दे

जबलपुरNov 11, 2019 / 07:27 pm

shyam bihari

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जबलपुर। बीएसएनएल इन दिनों खूब चर्चा में है। निजी कंपनियों के टैरिफ में होने वाले बड़े बदलावों की चर्चा के बाद तो बीएसएनएल अचानक प्रमुख मुद्दों में शामिल हो गया है। आवाजें उठने लगी हैं कि निजी कंपनियों को बाजार में टक्कर देने के लिए बीएसएनएल को आक्रामक मोड में वापस लाना होगा। इससे सरकार का तो फायदा होगा ही। ग्राहकों को भी बाजार में विकल्प मिलेंगे। फिलहाल बीएसएनएल किस दिशा में जाएगा? इसे सरकार किस रूप में देख रही है? इसका कायाकल्प होगा या नहीं? इन सवालों के बीच जबलपुर शहर में बीएसएनएल के ढांचे को लेकर विस्तार से चर्चा हो रही है। यहां नेशनल फेडरेशन ऑफ टेलीकॉम एम्प्लाइज यूनियन (एनएफटीई) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इसमें खुला अधिवेशन आयोजित किया गया। इस दौरान प्रमुख रूप से बीएसएनएल के भविष्य और कर्मचारी हितों पर मंथन किया गया। इस मुद्दे पर कई विचार सामने आए। नीतियों में बदलाव की बातें की गईं। इतने बड़े सरकारी उपक्रम में कमियों पर बहस हुई।
नौकरी तो खत्म नहीं होनी चाहिए
एनएफटीई के राष्ट्रीय महासचिव दिल्ली चंद्रेश्वर सिंह भी जबलपुर में थे। उन्होंने कहा कि बीएसएनएल में वे सरकार की ओर से लाए जा रहे रिवाइवल प्लान का विरोध नहीं कर रहे हैं। लेकिन, बदलाव के दौर में नौकरियां खत्म नहीं की जानी चाहिए। सरकार को इसके बाद की परिस्थितयों को स्पष्ट करना चाहिए। अधिवेशन की अध्यक्षता राष्ट्रीय अध्यक्ष इस्लाम अहमद ने की। जीएम एसआर एन. गुप्ता, सीजीएम डॉ.महेश शुक्ला ने कहा कि बीएसएनएल का भविष्य बेहतर है। इच्छाशक्ति के बल पर उसे और सशक्त बनाने के लिए काम किया जा रहा है। बैठक में एनएफटीई के अध्यक्ष एके मिश्रा, सचिव वैभव साहू, हबीबी खान, मनोज श्रीवास्तव, दिनेश यादव ने अपने विचार रखे। सबने यही कहा कि बीएसएनएल को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। दिल्ली से आए जीएम एसआर एन. गुप्ता ने सीएमडी का संदेश पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा बीएसएनएल कभी खत्म नहीं हुआ। रिवाइवल योजना के तहत इसे और बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह तभी सम्भव होगा, जब सभी अधिकारी-कर्मचारी सहयोग करें। इसके लिए ध्यान रखना होगा कि कमियों अपने में हैं। यदि इतना संस्थान कमजोर हुआ है, तो इसके लिए सिर्फ सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार नहीं हैं। जिम्मेदारी संस्थान के अधिकारियों, कर्मचारियों को भी लेनी चाहिए।

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