scriptजंगल की झिरिया के पानी से जिंदा एक गांव | A village alive with the water of the forest | Patrika News

जंगल की झिरिया के पानी से जिंदा एक गांव

locationजबलपुरPublished: Jun 02, 2019 06:49:12 pm

Submitted by:

abhimanyu chaudhary

जिस झिरिया में नहाते हैं जंगली जानवर, उसी पानी को पीकर जिंदा है एक गांव
 

water problam

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जबलपुर, आसमान छूती गर्मी में जब हर कोई पानी के सहारे जी रहा है, उसी दौर में पौड़ी गांव के लोग दो घूंट पानी के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। शहर से 36 किमी दूर कुंडम सीमा से लगे पनागर क्षेत्र के इस आदिवासी गांव में पानी का कोई स्रोत नहीे बचा है। पूरा जंगल के अंदर डेढ़ किमी दूर से पानी भरकर जिंदगी बचा रहा है। जबकि, उसी पानी के भरोसे जंगली जानवर भी अपना जीवन बचाए हुए हैं।
पौड़ी गांव की वन चौकी में हुआ बोर तीन वर्ष पहले खराब हो गया। भीषण गर्मी में जल स्तर 500 फीट से अधिक नीचे जाने के कारण पांच नलों से पानी नहीं आ रहा है, कुआं भी जवाब दे गया। चंदे के जरिए गांव में पानी का टैंकर पहुंचता है लेकिन साढ़े तीन सौ आबादी वाले 65 परिवारों के निस्तार के लिए पानी कम पड़ रहा है। श्रमिक काम धंधे पर चले जाते हैं तो महिलाएं टोली बनाकर जंगल में पानी भरने जाती हैं।
इंदर का बोर खराब होने से संकट
इंदर सिंह ने बैंक से 4.5 लाख लोन लेकर वर्ष 2015 में खेती के लिए बोर कराया था। वर्ष 2018 में बोर जवाब दे गया। उसके बाद जल संकट बढ़ गया। गर्मी में वह ग्रामीणों को पानी देते थे। मायूस इंदर ने कहा, लोन भरने से पहले ही बोर धोखा दे गया।
नहीं काम आया विधायक का पत्र, कुआं भी अधर में
सरपंच रामरती बाई के पति उमाशंकर यादव ने बताया, दो साल पहले उन्होंने गांव में बोर कराने का प्रस्ताव ब्लॉक कार्यालय में जमा किया। विधायक सुशील तिवारी ने पत्र भी लिखा लेकिन बोर नहीं हो सका। वर्ष 2018 में कुआं स्वीकृत लेकिन लगातार दो चुनाव के कारण कुआं का डीपीआर भी अटका है।
हर महीने देते हैं 100 रूपए

पत्रिका टीम ने शनिवार को पौड़ी के जलसंकट की पड़ताल की। संतोष सिंह मरावी, गुलाब सिंह सैय्याम, धर्मेद्रं सिंह मरावी, एवं कैलाश बर्मन झिरिया के किनारे बैठे थे। उन्होंने बताया, सरपंच के पति को वे हर महीने से 100 रूपए देते हैं तो टैंकर आता है लेकिन बारी-बारी भरने में 2-3 डिब्बे ही मिल पाता है। आशा भूमिया ने बताया, मजबूरी में झिरिया का पानी पीना पड़ता है। झिरिया में ही लोग स्नान करने जाते हैं। बेटियां ज्योति बैगा, रागिनी भूमिया ने कहा, जंगल में अकले जाना जोमिखपूर्ण है। राजबाई भूमिया, चांदनी, तनु, लौंगा बाई मरावी भी पानी भरने पहुंची थीं। जंगल के चौकीदार ज्ञान सिंह मरावी ने कहा, प्राकृतिक झिरिया में पर्याप्त पानी भरता है, वन्य प्राणी और ग्रामीण सबकी प्यास बुझ रही है।

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