जबलपुरPublished: May 01, 2019 01:03:26 am
Sanjay Umrey
दयोदय में आचार्यश्री विद्यासागर के मंगल प्रवचन
aachary vidhyasagar
जबलपुर। स्वर्ग में सूर्य की तरह लालदीप अनवरत जलते रहते हैं। इसलिए उनके लिए हमारे सूर्य का वह आकर्षण नहीं होगा। बिना मरे स्वर्ग भी नहीं मिलता। इसलिए हमें अपना जीवन ठीक से जीना चाहिए। मनुष्य की काया बड़ी कीमती है लेकिन जब तक साधना न हो वह किसी कीमत की नहीं। नींद को भंग करने वाला, निद्रा दूर करने वाला सुबह का सूर्य हमारा आदर्श है। अस्ताचलगामी सूर्य सुलाने का प्रतीक होने के कारण महत्व उतना नहीं रखता। यहां मुख्य बात जगाने और सुलाने से ही जुड़ी है। इसलिए जब जागे तभी सबेरा। उक्त उद्गार आचार्यश्री विद्यासागर ने दयोदय तीर्थ में मंगलवार को मंगल प्रवचन में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि प्रभात में भी लाली होती-संध्या में भी लाली होती, एक जगाती-एक सुलाती। सूर्यदेव सुबह से संध्याकाल तक संसार को लाभ मिलता है। हम भी अपने प्रयोजनों को सूर्य उदय के साथ प्रारम्भ करने लगते हैं।
सूर्योदय के समय कितना अच्छा दृश्य रहता है। कई लोग उत्तम स्थानों पर जाकर उस दृश्य को देखना चाहते हैं। सूर्योदय के साथ ही प्राची यानी पूर्वदिशा में लालिमा फूट पड़ती है। उसका दर्शन अद्भुत होता है। भानु का लाल स्वरूप अत्यंत आकर्षक होता है। पश्चिम की दिशा में वही लालिमा सूर्यास्त की प्रतीक होती है। डूबते हुए सूर्य को देखने का भी अलग आकर्षण होता है। संसार में लोग ऊगते हुए सूर्य को तो पूजते हैं पर डूबते सूरज को नहीं पूजते। यह जीवन से जुड़ी बात भी है। पूर्व का सूर्य उगता है तो पूजनीय जाता है। जबकि वही पश्चिम की ओर जाता है तो उसे कोई पूजता नहीं। इसमें रहस्य यह है कि उठते की शोभा निराली होती है। जागृति का कारक होने के कारण सुबह का सूरज आरती उतारने का पात्र होता है। जबकि डूबने वाला वही लाल-लाल सूरज पूज्य नहीं होता। चाहे आबू जाओ या पचमढ़ी। दयोदय तीर्थ में मंगल प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।