आचार्यश्री ने कहा कि यदि विष की एक बूंद समुद्र में डालने पर भी समुद्र पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मुनि महाराज जो भगवान का भाव-भक्ति का भाव कर लेते हैं, वही काफी होता है। श्रीफल अर्पण भी अपने मस्तिष्क को चरणों में रखने के समान है। गृहस्थ को कितने भी नारियल चढ़ा दो तो भी फल नहीं मिलेता लेकिन मुनि को श्रीफल चढ़ाने का प्रभाव लाखों-करोड़ों रत्नों के श्रीफल के समान होता है।