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आचार्य विद्यासागर महाराज ने फिर रखा निर्जला उपवास

locationजबलपुरPublished: Jul 27, 2021 08:28:43 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

संयम, तपस्या की पेश की मिसाल

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। तिलवाराघाट स्थित दयोदय तीर्थ में विराजमान संत आचार्य विद्या सागर महाराज ने मंगलवार को पुन: निर्जला उपवास रखा। उन्होंने संयम, तपस्या की अद्भुत मिसाल पेश की। आचार्यश्री का कहना है, स्वयं सहन करो। दुर्लभ से मिलता है संयम। शरीर के धर्म को चलाने के लिए खा रहा हूं, मेरे लिए नहीं खा रहा हूं। मुझे तो आत्मसाधना करनी है। ऐसे भाव रहना चाहिए। साधु आहार के समय पर यह भी ध्यान रखता है कि कितने कम से कम ग्रास लेना है।
एक बार ही लेते हैं भोजन-पानी-
आचार्यश्री अनेक वर्ष से सिर्फ जीवन चलने के लिए आवश्यक भोजन ही लेते हैं। आचार्यश्री विद्या सागर महाराज नमक, शक्कर, दूध, गुड़, तेल, हरी सब्जी, सूखे मेवे आदि सभी खाद्य सामग्री का आजीवन त्याग कर चुके हैं। 24 घंटे में एक बार भोजन, एक बार पानी लेते हैं। वर्तमान में आचार्यश्री ने जल की अंजुली की मात्रा एवं संख्या भी निर्धारित और सीमित कर दी है।
शरीर की क्षमता का आंकलन-
जैन साधु अपने पैरों के रखने की भूमि, अंजुली से आहार-पानी गिरने का पात्र रखने की भूमि और आहारदाताओ के खड़े होने की भूमि, ऐसी तीन प्रकार की विशुद्ध पृथ्वी को दृष्टि में रखकर अपने दोनों पैरों को समान स्थापन कर आहार लेते हैं। मंदिर से आहार के लिए अज्ञात प्रतिज्ञा ले कर श्रावक के घर में जाकर, दीवार आदि के सहारे के बिना खड़े होकर करपात्र (हाथों की अंजलि) में शुद्ध भोजन लेते हैं। क्योंकि बैठकर के भोजन करने से आहार मात्रा बढ़ती है। खड़े होकर भोजन करने से जिह्वा इन्द्रिय वश में हो जाती है। खड़े होकर भोजन करने से शारीरिक क्षमता ज्ञात हो जाती है। ये सबसे बड़ा कारण है, जब तक उनके हाथ मिल (अंजलि बन सकती) सकते हैं एवं पैर खड़े रहने के लिए स्थिर रह सकते हैं, तब तक ही मुनिगण आहार लेते हैं। अन्यथा उपवास धारण कर लेते हैं। सूर्य के उदय और अस्त के बीच एक बार भोजन करना एक ही बार पानी पीना मूल गुण है। उसमें भी मुख्यत: आहारचर्या निर्दोष रहनी चाहिए। अत्यल्प समय में आहार चर्या-
आचार्यश्री की आहारचर्या अत्यल्प समय में सम्पन्न हो जाती है। नवधाभक्ति पूर्वक श्रावक पडग़ाहन करते हैं तब नीची दृष्टि कर उसके घर आहार को चले जाते हैं। आहार संपन्न कर आधा घंटे में वापस भी आ जाते हैं। एक बार आहार करना भी श्रमण का एक मूलगुण है। उसका ही पालन करने वह चौके में जाते हैं और शीघ्र ही वापस आ जाते हैं।

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