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मद-अहम हमारे सम्यक दर्शन को खत्म करता है

locationजबलपुरPublished: Sep 09, 2021 06:36:47 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ गौशाला जबलपुर में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि मद-अहम का शमन करो, मद हमारे समय दर्शन को खत्म करता है। हमारे आचार्य कहते थे कि विस्मय का अर्थ आश्चर्य होता है और आश्चर्य हमारी हृदय की गति को साम्य नहीं रखता। वह कष्ट उठाता है। अपने परिणामों को शांत रखो स्थितिकरण में गड़बड़ी आने के कारण परिणामों के मध्य असंतुलन हो जाता है।
दोषों का अवलोकन करें
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति ज्ञान रखते हैं उचित भाव से कार्य करते हैं। उनके परिणाम भी उत्तम मिलते हैं, यदि मनुष्य का भाव सम्यक दर्शन होता है तो वह किसी दूसरे के मान का अपमान नहीं करता। हम अपने दोषों का अवलोकन करें और श्रावकाचार का पाठ करें तो हम अपने और दूसरे को भी सम्भाल सकते हैं। इससे ही हम मोक्ष मार्ग पर चल सकते हैं।
प्राणों के प्रति सावधानी रखना चाहिए
आचार्यश्री ने कहा कि आप प्राणी कहलाते हैं। जो प्राणों के माध्यम से जीता है उसे प्राणी कहा जाता है। मनुष्य में 10 प्रकार के प्राण होते हैं। उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। अपने प्राणों के प्रति सावधानी रखना चाहिए। हम शारीरिक,आर्थिक, मन वचन, काया और बल के कारण आवेश में आकर अपने प्राणों को कमजोर करते हैं। परिवार के सदस्य भी सदमे में आ जाते हैं। दूसरे सदस्य भी रुग्ण हो जाते हैं।
सम्यक दर्शन अपनाएं
उन्होंने समझाया कि आप आवेश में आकर क्रुद्ध हो कर कुछ बोलते हैं, वह किसी को धक्का देने से भी ज्यादा चोट पहुंचाता है। दूसरों के कटु शब्द सुनकर हम आवेश में आ जाते हैं। हमारे मान-अभिमान पर चोट होती है। मान-अपमान का प्रदर्शन होने लगता है, जितना बड़ा समूह होगा हमारा मान-अभिमान उतना बड़ा होगा, यदि मान बढ़ता है तो हमारा खून संचार बढ़ जाता है। इसके बारे में पूर्वाआचार्यों ने कहा है कि जिसके पास सम्यक दर्शन होगा वह अच्छे से जीवन प्रबंधन कर लेता है, यानि न तो किसी को कष्ट देता है न कटु वचन बोलता है। यही उसको परिणाम में वापस भी मिलता है।
मन, वचन, भाव को सम्यक रखो
आचार्यश्री ने कहा कि अपनी स्थिति जो स्वयं सम्भाल ले वह दूसरे को भी आधार दे सकता है। चिंताएं और रोग ऐसे लोगों को कम होते हैं, जो संतुलित जीवन जीते हैं। हमारे आचार्य कहते थे कि अपने बल को नियंत्रण में रखो। उसे ज्यादा बढ़ाना या प्रदर्शित करना उचित नहीं होता। खून का संचार बढऩे से वह शरीर के लिए घातक हो जाता है। अत: मन वचन और भाव को सम्यक रखना आवश्यक है। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि यदि हम शांत मन और निर्मल दृष्टि से यदि किसी उग्र स्वभाव वाले जीव, जो हम पर हमला करने तत्पर है उसकी तरफ देख लेते हैं तो वह हिंसक जीव भी शांत हो जाता है। आपकी शांत तरंगे उग्र को भी शांत कर देती हैं। हमारे अच्छे परिणामों में वेग आ गया तो नुकसान होगा।

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