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जो भारत को भूल गया, वो भगवान को भूल गया

locationजबलपुरPublished: Sep 12, 2021 06:35:32 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने उत्तम मार्जव धर्म पर प्रवचन के दौरान कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ पूर्णायु परिसर में चातुर्मास के लिए विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने पर्युषण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्जव धर्म पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि आज के समय मां-बाप अपना सब कुछ त्याग कर, सारी सम्पत्ति लगाकर और लोन लेकर बच्चों को विदेश भेज रहे हैं। जो शिक्षा भारत में मिलती है वह कहीं नहीं मिलती। विदेश जाकर बच्चे मां-पिता और अपनी धरती मां से वंचित रह जाते हैं। भारत को भूला तो भगवान को भूल गया।
बच्चों को दें देशप्रेम की शिक्षा
आचार्यश्री ने समझाया कि बच्चों को भारतीय संस्कृति और देश प्रेम की शिक्षा देनी चाहिए। यदि सिर्फ धन की ओर देखते हैं तो देखो क्या-क्या हो रहा है दुनिया में। राष्ट्र के विकास का धन विस्फोटक पदार्थों में लग रहा है। अभी पता चला कि कहीं छह लाख करोड़ का विस्फोटक-हथियार छोड़ आए। सारा धन और ध्यान विस्फोटक पदार्थों को एकत्र करने में खर्च हो रहा है। आप से दुनिया डरेगी तो आपको भी दुनिया डराएगी। यदि दुनिया डरने-डराने का ही घर बन गया तो विश्व में शांति कहां से लाओगे?
मानव धर्म से अपना शृंगार करें
आचार्यश्री ने कहा कि जिनवाणी की कृपा से ही लोगों में शांति आ सकती है। यही मूल मंत्र है। प्रलय आने के पूर्व अपनी लय, अपनी चाल और अपनी ध्वनि को बदलो। चालाकी से बचें। तभी सभी का कल्याण हो सकता है। हम कठोर न बनें बल्कि मानव धर्म से अपना शृंगार करें। इससे मान और कषाय खंडित होगा और हम मानव धर्म के मार्ग पर चलने लगेंगे। हम भीड़ की देखा देखी करते हैं। जो दूसरे कर रहे हैं वही हम करने की सोचते हैं। तात्पर्य है कि दुनिया करती है तो मुझे भी करना है। दुनिया में सभी नर्क से बचना चाहते हैं। परंतु नर्क राह पर चल पड़ते हैं। हमें पाप से कोई डर नहीं है, इस प्रकार सोचने वाला व्यक्ति कठिनाई से भी भवसागर में पार नहीं पा सकता।
अपरिग्रह की ओर बढ़ें
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि मैं उस ज्ञान को नमस्कार करता हूं जो आत्मा के गुण का परिचय करा देते हैं। जो ज्ञान हमें पंचेेंद्रीय से छुटकारा दिला दे वहीं सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने कहा कि भीतर माल गोदाम में सड़ रहा है, लेकिन बाजार में भाव बढ़ रहा है। इसीलिए नहीं बेचा जाएगा। यह विचार भी नरक के द्वार तक पहुंचा देते हैं। नर्क का द्वार कभी समाप्त होने वाला नहीं है। ऋषियों ने लिखा है, हम अपरिग्रह की ओर बढ़ें। तभी हमें मुक्ति मिल सकती है। वह भी यदि बोझ हो जाए और बोझ कम हो रहा है तो सांस लेने के लिए रास्ता खुल रहा है। यही मुक्ति और सुख का ठिकाना है। यही सम्यक ज्ञान है बाकी सब मिथ्या है।
मैं का भाव हटाना पड़ेगा
आचार्यश्री ने कहा कि जब दिल से जीव मात्र के प्रति मैत्री भाव जागृत हो जाए, किसी एक जीव से नहीं बल्कि दुनिया के सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव उत्पन्न हो यही सम्यक दर्शन है। सम्यक भाव है। जब सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव आ जाएगा तो आपसे, राग और द्वेष छूटने लगेगा और आप मोक्ष मार्ग पर प्रशस्त होंगे। दुनिया के शांति प्रदान करने वालों के बीच जब तक मैं रहेगा तनाव रहेगा। मैं का भाव हटाना पड़ेगा। यदि यह मैं हट गया दुनिया में शांति स्थापित हो जाएगी। दूसरों के लिए नहीं अपने लिए। नीतियों का पालन करना आवश्यक है।
आचार्यश्री को अशोक पाटनी जयपुर एवं प्रभात शाह मुंबई ने शास्त्र भेंट किए।

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