जबलपुरPublished: Oct 06, 2021 06:36:12 pm
Sanjay Umrey
दयोदय में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा
Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur
जबलपुर। दयोदय में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि हमें निषपरिग्रह रहना चाहिए। निषपरिग्रह का आशय जितना आवश्यक है उतना उत्पादन करो। ताले में बंद कर के संग्रह न करो। संग्रह के साथ उसकी सुरक्षा और संरक्षण का बोध अपने सिर पर मत लो। उतना ही उत्पादन किया जाए जितना खर्च आवश्यक है उतना ही व्यय करो। व्यानुसारी आयो और आयनुसारी व्ययो।
जो पैदा हुआ उसका नाश–
उन्होंने कहा कि उपयोगिता के अनुसार ही उत्पादन करो और जितना उत्पादन हुआ है उतना ही व्यय करो। विद्युत करंट संग्रहित नहीं किया जा सकता। मेरे छत्तीसगढ़ विहार के दौरान मैंने जब विद्युत उत्पादन संयंत्र को देखा तब मुझे ज्ञात हुआ कि उत्पादित विद्युत तुरंत ही प्रवाहित कर दी जाती है। उसे संग्रहित नहीं किया जा सकता। लोग विद्युत के अनेकों उपकरणों का उपयोग करते हैं। लेकिन करंट जाते ही सभी उपकरण अपने आप बंद हो जाते हैं। यह निषपरिग्रह होता है और किसी किसी को संग्रहनीय बीमारी होती है। इसके अंतर्गत आप ज्यादा से ज्यादा संग्रह करने का लालच करते हैं। यह भी सत्य है कि जो कुछ भी उत्पादित हुआ है उसका नाश भी अवश्य होगा। उसकी उम्र निर्धारित होगी। वह जीवनकाल के बाद समाप्त हो जाएगा। आत्म तत्व में भी इसी प्रकार की गतिविधियां चलती रहती हैं।
आय व्यय में हो संतुलन–
जिस तरह विद्युत उत्पादन में ज्यादा करंट भी नुकसान देह है और कम करंट भी नुकसान देह। उसी तरह व्यय एवं आय में भी संतुलन होना चाहिए। जिस तरह धन कमाने के लिए धन और ऋण-उधार में संतुलन होना चाहिए। यदि आप इस संतुलन को समझ जाओ तो फिर इतना संघर्ष क्यों कर रहे हो। यह संतुलन आपके हाथों में ही विद्यमान है। इस प्रकार यदि हम अपने उपयोग को अब द्रव्य की भीतरी शक्तियों के ऊपर लगा दे तो शरीर रूपी विद्युत केंद्र में भी इतनी विद्युत हो जाएगा जिसे कोई बुझा नहीं सकता।
मोक्ष मार्ग जटिल पर कुटिल नहीं–
मोक्ष मार्ग में ऐसे प्रसंग आएंगे कष्ट आएंगे। ऐसी विषम परिस्थितियां भी निकलेगी। ऐसी स्थिति तो तब तक चलेगी जब तक आयु कर्म का उदय होगा। इन्हीं परिस्थितियों को क्षमता के साथ सहन करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए जब तक अपनी आत्मा की मुक्ति नहीं हो जाती।