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साधना से दूर होते हैं कष्ट

locationजबलपुरPublished: Oct 07, 2021 07:13:09 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि संसारी प्राणी को समझाना बहुत मुश्किल है। फिर करुणा कर के जो व्यक्ति बैरी है जो व्यक्ति अपराधी है सब कुछ है फिर भी दृष्टि मिल जाए, क्षमा भाव उत्पन्न हो जाए। हमें भी सोचना है। अपने शेष जीवन को किसी के भी साथ बाहर नहीं करना है। सम्यक दृष्टि से मित्रता और सहयोग बढ़ाना है। यह कष्टमय संसार है हमें कष्ट सहन करने के लिए साधना करनी चाहिए। साधना के लिए वातावरण मिलता नहीं है वातावरण बनाना पड़ता है।
शरीर को भोजन जरूरी
उन्होंने कहा कि चातुर्मास के 4 महीनों के दौरान कर्मों के विषय में चिंतन करने वाले धर्म ध्यान में लीन रहने वाले 4 महीनों के प्रतिज्ञा के पश्चात चातुर्मास का निस्तापन करके क्षुधा विनाश नाय का पालन करते हुए अब सुकौशल मुनि महाराज नैवेद्य की ओर जा रहे है। शरीर को भोजन आवश्यक है। सुकौशल मुनि श्री घनघोर जंगल में से गुजर रहे हैं। उद्देश्य आहार क्रिया को पूर्ण करने के लिए उपाय करना है। वैसे भीतरी आहार तो वह करते ही रहते हैं लेकिन बाहरी साथ आहार 4 महीने के बाद होने के भाव हैं। आहार चर्या के लिए वह जिस शरीर के साथ जा रहे हैं वही चिंतन और दया में धर्म का पालन करते हुए, एक एक कदम आगे चल रहे हैं। गुरु आगे – आगे और शिष्य पीछे- पीछे चल रहे हैं। पगडंडी है इसी बीच में वे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए जा रहे हैं। तभी, दूसरा प्राणी सिंहनी भी सोचती है कि हम भी अपने क्षुधा शांत कर लें। पीछे से सिंहनी दहाड़ कर आ जाती और मुनिश्री को खाना शुरु कर देती है। तभी गुरुजी की दृष्टि जाती है और समझ में आता है कि कुछ न कुछ तो हो गया है। सोचा यह कैसा योग है यह सिंहनी पूर्व जन्म में सुकौशल मुनि की ही मां थी। जिसने पाला पोसा सब कुछ किया किंतु आज उसके दिमाग में हिंसा आयी और अपने पुत्र को ही खा लिया। तुमने यह क्या कर दिया इतना कहना ही पर्याप्त था कि सिंहनी के दोनों आंखों से पानी गिरने लगा। इस घटना से उसे धर्म ध्यान से शुकुल ज्ञान की ओर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उसे धर्म ध्यान की ओर जाने का अवसर कितने उज्जवल भाव से मिला कि इस निमित्य के बिना उसको तात्कालिक धर्म ध्यान से शुकुल ज्ञान में जाने का अवसर प्राप्त नहीं होता। कितने उज्जवल भाव भोजन की बेला में भोजन के संकल्प लेकर जाते समय शुक्ल ध्यान की भूमिका बन सकती है।
एक वक्त आहार कर सेवा करते हैं मुनि
मुनि का आहार एक वक्त भोजन और पानी आदि लेकर के मुनि सेवा का कर्तव्य पालन करते रहते हैं। अंत में सुकौशल मुनि को तात्कालिक केवल ज्ञान हो गया और ध्यान को पार करके वह चले गए और सिहनी का शरीर भी छिन्न-भिन्न हो गया। अंकित कृत केवली के रूप में उनका सिद्धालय के लिए गमन हो गया। कहां श्रावकों के घर आहार चर्या की तलाश थी कहां अपने मोक्ष मार्ग पर चले गए। ऐसे निर्विकल्प दशा कैसे करते होंगे। उनका हमेशा- हमेशा तत्व चिंतन प्रखर से प्रखरतम होता चला गया गुरु तो सामने रह गए शिष्य केवलज्ञानी हो गया।

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