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योग शुद्धि से उपयोग शुद्धि होती है

locationजबलपुरPublished: Oct 09, 2021 06:36:15 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

दयोदय तीर्थ पूर्णायु परिसर में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ पूर्णायु परिसर में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि साधु परमेष्ठी, श्रवण परमेष्ठी, उपाध्याय परमेष्ठी, आचार्य परमेष्ठी, सिद्ध परमेष्ठी और अंत में अरहंत परमेष्ठी को भी सभी अपने उपयोग का विषय बनाओ। तभी जो शुद्ध अंत:करण वाले हैं उनका ध्यान करने से और शुद्ध भोजन करने से भाव शुद्ध होंगे। इसलिए जो उपयोग में शुद्धि लाना चाहते हैं, योग शुद्ध करो।
रसना-डसना बन गया
उन्होंने समझाया कि व्यग्रता दो प्रकार की होती है। व्यग्रता से आशय व्याकुलता, विकलता, परेशानी से होता है। जाग्रत व्यग्रता हमेशा अग्रता से वीमुख करा देती है। जिस पर हमें टिकना है या स्थित रहना है उसे मिटा देने का नाम ही व्यग्रता है। वर्तमान काल में व्यग्रता हमेशा हमारे पीछे पीछे लगी रहती है। उपयोग की व्यग्रता को दूर करने के लिए योग की व्यग्रता को सिद्ध कर लेना चाहिए। वह योग क्या है? जब हमारा परिणाम अशुद्ध होता है तो उसमें हमारा योग भी अशुद्ध हो जाता है। अशुभ योग को दूर होकर पहले हम शुभ योग की तरफ हम आएं। उसके लिए शरीर के लिए शरीर के ऊपर नियंत्रण सबसे आवश्यक होता है। व्यग्रता का कारण जो भी भारी वस्तु हो तो वह शरीर है। शरीर में भी व्यग्रता का कारण सर्वप्रथम भोजन है। भोजन- भूख की परीक्षा ही आपकी परीक्षा होती है। शरीर के अंदर जो भोजन भेज रहे हैं उसकी चिंता करो। भोजन का गलत उपयोग आप कर रहे हैं और उसका कारण है रसना-रस इन्द्री। आजकल यह रसना-डसना बन गया है।
दीपक न जलने पर तरीका गलत
आचार्यश्री ने कहा कि प्रात: काल में भगवान की उपासना भी बाद में होती है पहले रसना देवी की उपासना होती है। भूख हमेशा हमें डसती रहती है। हम कुछ भी रस इंद्री को खिलाएं यानि जीभ को खिलाएं, उसे कुछ नहीं खाना, रस इंद्री तो सिर्फ स्वाद लेती है। भोगना तो पेट को पड़ता है। दवाई भी पेट को लेनी पड़ती है। बीमारी होने पर रस इंद्रिय के लिए कोई दवाई नहीं है। सिर्फ संत ही रसना देवी से बचे रहते हैं। क्योंकि वे पंच इंद्रियों में रस इंद्रिय को काबू में रखते हैं। ताकि योग की शुद्धि हो जाए। योग शुद्ध होते ही अपने आप उपयोग शुद्ध होता है। जिस तरह दीपक में कोई कमी नहीं होती यदि वह नहीं जलता तो कमी होती है तेल में। यदि दीपक नहीं जले तो आपके उपयोग करने का तरीका ठीक नहीं था। आपने बिना देखे बिना शुद्ध किए तेल को दीपक में डाल दिया और वह नहीं जल पाया।
अशुद्धियां मिटने से व्यग्रता भी खत्म
आचार्यश्री ने कहा कि योग श्रुति से उपयोग शुद्ध अपने आप हो जाता है और उपयोग शुद्ध होती है तो सारी अशुद्धियां मिट जाती हैं। यहीं से आप की व्यग्रता समाप्त होती है। यदि ज्ञान आपका शुद्ध है, लेकिन ध्यान भी आपका शुद्ध होना आवश्यक है। तभी ध्यान और योग शुद्ध होंगे। तभी आपका ध्यान जिस पर टिकना चाहिए वहां टिक सकता है।
आप कर रहे विलम्ब
उन्होंने समझाया कि एक अंधेरे कमरे में बहुत सारे लोग स्वाध्याय कर रहे हैं। बीच में एक दीपक रखा है सभी लोग आत्म चर्चा करने लगे हैं तत्व ज्ञान पर आपकी चर्चा निर्विघ्न चलती जा रही है। यही उपयोग की शुद्धि है। दीपक की रोशनी सभी को रोशन कर रही है। यदि धीमी धीमी हवा चल रही है तो कुछ नहीं होगा। लेकिन यदि तेज हवा चली तो दीपक को बुझा देगी और सब अंधकार में पहुंच जाएंगे। इसी तेज हवा को व्यग्रता कहते हैं। राज वर्तीकार ने जैन संतों के लिए मोक्ष मार्ग संबंधी भोजन कैसे करना है और भोजन के बाद उसका उपयोग कैसे करना है। भावों को शुद्ध रखने के लिए पंचेेंद्रीय के विषयों को कैसे शुद्ध रखना है, सब बताया है। उन्होंने कहा कि मैंने तो स्वाद – रस इन्द्रिय विजय के लिए एक बार में ही पूर्ण द्रव्य चढ़ा चुका हूं। आप लोग ही विलंब कर रहे हैं।

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