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खानपान से गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है प्रभाव

locationजबलपुरPublished: Oct 12, 2021 06:21:31 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि हमारा खान-पान रहन-सहन अब ऐसा हो गया है कि अल्पायु में ही अनेक रोग हो रहे हैं। बिना ध्यान रखे खानपान अब ऐसा किया जा रहा है कि गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है, लेकिन मां-बाप इस विषय में कुछ नहीं समझते।
हर चीज का उपयोग अलग
उन्होंने कथा के माध्यम से समझाया कि एक बूढ़ी महिला अपने फटे हुए वस्त्रों को सिल रही थी। तभी महिला का ध्यान भटक जाने से उसकी सुई जमीन पर गिर गई, जो बहुत ढूंढने के बाद भी नहीं मिली। एक व्यक्ति ने महिला से पूछा कि दादी मां आपका क्या गुम गया है। मैं क्या मदद कर सकता हूं। महिला ने कहा कि मेरी सुई गिर गई है। तब उस व्यक्ति ने सलाह दी कि प्रकाश में देखो तो आपकी सुई मिल जाएगी। महिला उस व्यक्ति की बात मानकर जहां प्रकाश था वहां अपनी सुई ढूंढती रही, लेकिन सुई नहीं मिली। तभी एक अन्य भद्र पुरुष आए उन्होंने पूछा कि माई आप क्या ढूंढ रही हो। महिला ने कहा कि मैं अपनी सुई ढूंढ रही हूं। उसने पूछा कि आप की सुई यहीं गिरी है क्या? तब महिला ने बताया कि आपके जैसे ही एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि प्रकाश में ढूढो। यहां प्रकाश है। इसलिए यहां ढूढ रही हूं। मैं कहीं और बैठी थी। जहां मेरी सुई गिरी है। तब व्यक्ति ने उसने समझाते हुए कहा कि मां प्रकाश में देखने का यह मतलब नहीं है कि जहां प्रकाश वहां सुई होनी चाहिए। बल्कि आशय यह था कि जहां आप बैठी थी, सुई गिरी है वहां प्रकाश करके देखा जाए। इसका यह मतलब है कि आप को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस वस्तु का किस समय, कहां और कैसे उपयोग किया जाए। अन्यथा उपयोग नहीं दुरुपयोग होता है।
बच्चों में बुरी आदतें मत डालें
आचार्यश्री ने कहा कि आज छोटे-छोटे बच्चों को चश्मे लग रहे हैं। उसके बाद भी मां-बाप उसे वीडियो और मोबाइल दे रहे हैं। आंखों की ज्योति इसी प्रकार के दुरुपयोग से कम होती जा रही है। बच्चों में आंखों के साथ मानसिक प्रभाव भी पड़ रहा है। आज मां बाप कहते हैं कि बच्चों को टेलीविजन और मोबाइल की आदत पड़ गई है। जबकि उन्हें आपने यह आदत पडऩे ही क्यों दी इस पर विचार नहीं करते। आजकल पढ़ाई के नाम पर 24 घंटे मोबाइल दिए जा रहे हैं। जबकि उनका मोबाइल का उपयोग नहीं दुरुपयोग हो रहा है। अगर पढ़ाई के लिए आवश्यक ही है तो उतने समय ही उपयोग करने दिया जाए जितना अति आवश्यक है। इस तरह यदि आप बुरी आदतें डालेंगे तो बच्चों में संस्कार कहां से आएंगे।
प्रकृति का दुरुपयोग न करें
आचार्यश्री ने कहा कि आजकल दिन में भी बड़ी-बड़ी लाइटें लगाने का चालान हो गया है यह अनावश्यक और अपव्यय के अलावा कुछ नहीं है। अनावश्यक विद्युत का प्रयोग करने पर दंड का प्रावधान होना चाहिए। आज के समय अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ाया जा रहा है, यहां प्रवचन हो रहे हैं और 1 किलोमीटर तक ध्वनि विस्तारक लगाए गए हैं। जबकि जितना पंडाल है जितने लोग बैठे हैं यदि धीरे-धीरे भी बोला जाए और उनको सुनने में आ रहा है तब ध्वनि विस्तारक की कोई आवश्यकता नहीं है। आप किसको बता रहे? हैं किसको सुना रहे हो ? किस को दिखा रहे हो? प्रकृति ने जितना दिया है वह मनुष्य के जीवन के लिए काफी है। उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

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