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शब्दों में नहीं आत्मा में अर्थ छुपा होता है

locationजबलपुरPublished: Oct 13, 2021 06:32:02 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि यह समझ जाना चाहिए कि शब्दों में भी अर्थ है। आकाश में शब्द गूंजता तो है इसके लिए यह कहा जा सकता है कि शब्दों में नहीं आत्मा में अर्थ छुपा होता है। हम सोचते हैं पोथी – पुस्तकों में शब्द रहते हैं। उन शब्दों के साथ अर्थ की ओर जाने का संकेत भी छुपे रहते हैं। शब्दों को सिर्फ पढकऱ नहीं उनके अर्थ समझकर उस मार्ग पर चलना चाहिए।

शब्द चयन महत्वपूर्ण
उन्होंने आगे कहा कि खोखले स्थान में ध्वनि का प्रवाह बिना विरुद्ध हुए बहता जाता है। लेकिन यदि उसी स्थान पर कुछ ठोस वस्तु आ जाए तो ध्वनि में अवरोध आ जाता है। इसी तरह यदि श्रोता अपना ध्यान भटका देता है तो शब्दों को मन मस्तिष्क तक पहुंचने में अवरोध पैदा हो जाता है। इसलिए वक्ता को भी सदैव इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उनका शब्द चयन कितना महत्वपूर्ण है। जो श्रोताओं के समझ में आए और वे उसे ध्यान रखें।

शब्दों में होना चाहिए भाव
आचार्यश्री ने कहा कि कविता शब्दों से बनती है यह बात गलत है। कविता भावों से बनती है। जिसके लिए शब्द संयोजन किया जाता है। यदि कविता में कोई भाव और अर्थ हैं तब अपने आप ही कविता में लय भी आ जाती है। हम लोग भी जो शब्द बोलते हैं यदि उनका ध्यान न किया जाए तो वह भी विलीन हो जाते हैं। आजकल शोध प्रबंध में शब्दों का संकलन तो होता है लेकिन उस लय का संकलन नहीं होता। उस भाव का संकलन नहीं होता जो किया जाना आवश्यक है। उनके भीतर क्या गुण अर्थ छुपा है जो यह जान लेता है वह शब्दों के बारे में नहीं सोचता। भावों के बारे में सोचता है। कई शब्दों के अर्थ कटु होते हैं और यह भी देखा गया है कि शब्द तो खत्म हो जाता है लेकिन कटुता बनी रहती है। आत्म तत्व उसी कटुता में घूमता रहता है जबकि सोचना यह चाहिए कि आपने इस कटुता को स्वीकार ही क्यों किया। इसी के लिए कहावत भी बनी है एक कान सुनो और दूसरे कान से निकाल दो। यानि जो वाक्य आपको परेशान करे कटुता दे उसे सुनने के बाद तत्काल निकाल देना चाहिए। मन से निकाल देना चाहिए।

शब्दों की लय बनी रहे
आचार्यश्री ने कहा कि जिस तरह वीणा में वाणी होती है की वाणी में वीणा होती है। इस पर विचार किया जाए तो दोनों में कुछ नहीं होती है। क्योंकि तारों में बजाने वाले की योग्यता का चमत्कार है। यदि तार ढीली हो जाए तो वीणा से सुर नहीं निकल सकते। यदि ज्यादा तान दी जाए तब भी वह टूट जाता है। इसी तरह आपके वाणी के शब्द भी कई बार कटुता पैदा कर देते हैं। जिस प्रकार फलों के अंदर मिठास और स्वाद रहता है। उसी प्रकार शब्द भी मिठास लिए होने चाहिए। ताकि उसे बाद में भी स्मरण किया जा सके। यही शब्द पुरुषार्थ का फल है। हमारे देश में ऐसे संत हुए हैं महात्मा हुए हैं जिन्होंने कब लिखा है कहां लिखा है यह ज्ञात न होते हुए भी अभी तक हर शब्द उपयोगी बना है। यदि उन शब्दों के रहस्य समझ लिए जाएं, आत्मसात कर लें, तो वह परमात्मा की ओर ले जाएंगे। आप भी वीणा की ओर न भी देखें तो भी वीणा से निकल रही मधुर ध्वनि आपके भावों को निर्मल कर देती है। शब्दों में वह लय बना रहना चाहिए कि प्रलय भी आ जाए तो भी उसका लय बना रहे।
संतों की वाणी धरोहर
आचार्यश्री ने कहा कि ऐसी गाथाएं, ऐसी कविताएं, ऐसे सूत्र, ऐसे गीत, ऐसे प्रसंग, शब्दों के माध्यम से हमारे संतों ने संकलित किए हैं जो हमारे लिए धरोहर है। अब हमारी वृत्ति उसे कहां तक स्वीकार करती है यह आपके ध्यान और मन पर निर्भर है।
आचार्य विद्यासागर महाराज कहते हैं कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारे आचार्यों ने और संतों ने जो लयबद्ध शब्द लिखे हैं, वही हमारे कानों में गूंजती रहें और उसके द्वारा हमारा भी कल्याण हो जाए।

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