scriptआत्म लक्षण हमेशा विलक्षण होते हैं | Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur | Patrika News

आत्म लक्षण हमेशा विलक्षण होते हैं

locationजबलपुरPublished: Oct 14, 2021 06:39:59 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

Aachary Vidhyasagar Maharaj in Jabalpur

जबलपुर। दयोदय तीर्थ में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि कहा जाता है आत्मा कहीं भी नजर में नहीं आती। जैसी आपकी शक्ल है वैसे ही आपको नजर आएगी। आपको देखने से भी मनुष्य गति का भान होता है। हमें देखते हैं तो भी मनुष्य गति ही दिखती है। फिर आत्मा है क्या। न तो कहीं आत्मा दिख रही है न ही कहीं मिल रही है। बस आत्मा के बारे में सुना है और पढ़ा है। हमारे आचार्यों ने कहा है कि जो है उसका लक्षण भी होता है जो नहीं होता है उसका लक्षण भी नहीं होता है। आत्मा यदि है तो उसके लक्षण भी होने चाहिए? आत्मा के लक्षण हमेशा विलक्षण होते हैं।
खुद की ओर देखो
उन्होंने कहा कि आत्मा के लक्षण को हम रूप के माध्यम से बांध नहीं सकते। लक्षण को हम वर्ण द्वारा भी नहीं बांध सकते। शव को जलाने के बाद हड्डियां ही बचती हैं आत्मा नहीं। कहते हैं हड्डियां भी जल सकती है लेकिन आत्मा नहीं जल सकती। फिर आत्मा है कहां?
तुम दूसरे की ओर देख रहे हो इसलिए तो आत्मा नजर नहीं आती। अपनी ओर देखो, आत्मध्यान करो, अपनी अंतरात्मा नजर आएगी।
पंचतंत्र की कथा सुनाई
आचार्यश्री ने कहा कि पंचतंत्र में एक कथा है कि एक कोयल, एक वृक्ष में रहती थी। जब अंडे देने का समय आया तो उसने सोचा कि वह अपना घोंसला किस पेड़ पर बनाए ताकि अंडा सुरक्षित रहें। यदि मैं भोजन लेने भी जाऊं तो अंडे को कोई नुकसान न हो। बहुत विचार के बाद उसने कौवे की घोसले में अपना अंडा भी दे दिया। पहले से ही कौवे का एक अंडा उसमें सुरक्षित था। कौवे ने बहुत सुरक्षित अंडों को रखा और जब उसमें से बच्चे पैदा हो गए तब एक दिन कौवा जब भोजन लेने गया था। तब कोयल ने अपने बच्चों को सुरक्षित अपने घोसले में वापस रख लिया। इसी तरह समयसार में कहा गया है कि यह तुम नहीं हो तो यह शरीर से प्रथक आत्मतत्व है। ऐसा भेदविज्ञान होना चाहिए। कहा गया है कि जहां देह अपनी नहीं तहा न आप न कोई घर संपत्ति पर प्रगट है पर हैं परिजन लो लोए। जिस काया को हम अपना समझ कर पालते हैं, समय आने पर आत्मा चली जाती है। कोई सम्पति, परिजन उसे रोक नहीं सकता।

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