मोह की बेल मोड़ दें तो मोक्ष की तरफ बढ़ जाएंगे
जबलपुरPublished: Jun 11, 2019 12:49:36 am
दयोदय तीर्थ में बोले आचार्यश्री विद्यासागर
aachary vidhyasagar maharaj ka vihar
जबलपुर। एक किसान ने अपनी जमीन में एक कुआं खोदा था, उसे बांधा भी था। उस खेत में पानी के लिए दूसरे स्थान से जाने की व्यवस्था उसने कर दी थी, साथ ही उसमें कोई दूसरी वस्तु न गिरे, इसका भी इंतजाम किया था। पेड़-पौधे भी लगाए थे। वह उस कुएं के किनारे-किनारे बीज भी बो चुका था। उसके बाद वह सोचता था कि एक.दो माह में वे तैयार हो जाएंगे। वैसा ही हुआ, वे बीज अंकुरित होकर फैलने लगे। वे पौधे नहीं किन्तु बेल थीं। बेल तो फैलती ही हैं। उन्हें जहां कहीं सहारा मिलता है, फैलती जाती हैं। उनकी शाखाएं कुएं में भी उतर गईं। फूल भी आ गए और उनके नीचे फ ल भी आ गए। फ ल बढ़ते जा रहे हैं और फूल सूखते जा रहे हैं। हो सकता है वह बेल कुम्हड़ा की रही हो। उसे कद्दू भी बोलते हैं। उसका फैलना मोह के बढऩे की तरह है।
उक्त उद्गार आचार्यश्री विद्यासागर ने दयोदय तीर्थ में सोमवार को मंगल प्रवचन में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि बेल का फैलना ही मोह का प्रताप है। मोह के कारण बेल फैलती और फू लती है। यदि चाहें तो मोह को थोड़ा सा हम मोड़ दें तो मोक्ष की ओर भी बढ़ सकते हैं। सीमा की दृष्टि से यदि सब लोग अपने आपको धर्मात्मा मानें तो दुनिया सिकुड़ जाएगी। इस प्रकार आप लोग सोच लें कि कोई भी व्यक्ति अधूरा न रह जाए।
अपने पैरों पर खड़ा होकर सब काम कर ले। कद्दू की बेल से कई परिवारों का पेट भर सकता है। यह परोपकार की दृष्टि से देखना होगा। हम धर्म के मुख को देखना चाहते हैं। वह बेल इस प्रकार अपने संरक्षण के साथ दूसरों के लिए भी उपयोगी बनती है। ऐसा ही मनुष्य भी कर सकता है। प्रकृति और भाव के अनुरूप कार्य करने से कईयों के लिए सहयोगी बन सकते हैं।