जबलपुर. नाम, नमक और निशान पर मर मिटने वाले तिलहरी के शुक्ला परिवार ने अपना सबकुछ खो देने के बाद भी देश की सेवा का जज्बा नहीं छोड़ा। इस परिवार की बेवा है सुनीता शुक्ला । सुनीता कहती हैं उनके पति की आखिरी इच्छा बेटों को फौज ज्वाइन करवानी थी, जिसे मैंने हरसंभव प्रयासों से पूरी की।
2000 में शहीद हुए थे सुनील
सुनील कुमार शुक्ला 2000 में जम्मू की बॉडर कुपवाड़ा में अन्य साथियों के साथ तैनात थे। 30 दिसंबर को दुश्मन की ओर से गोलाबारी हुई। ठिठुरती रात में जवाबी फायर करते हुए सुनील अपने साथियों को उस जगह से निकालने का प्रयास करते रहे, उन्होंने साथियों को तो उस जगह से निकाल दिया लेकिन वे खुद को नहीं बचा सके।
(नोट : जैसा कि बेवा को सुनील के साथियों ने बताया था। )
मुश्किलों से घिर गया था परिवार
सुनीता कहती हैं कि घर के मुखिया के नहीं होने से परिवार मुश्किलों में आ गया। उस दौरान उसका एक बेटा था। वह गर्भवती थी। उसने 14 अप्रेल 2001 को एक बेटे का जन्म दिया। परिवार का बोझ उस पर आ गया था, मुश्किलों से संघर्ष करते हुए उसने बच्चों की परवरिश की, उन्हें शिक्षा दिलवाई। समय में बदलाव आया और दोनों को सेना में भर्ती करने का मिशन शुरू कर दिया। बीस सालों की मेहनत के बाद बड़ा बेटा दीपक शुक्ला सेना की कोर एएमसी में शामिल हो गया अब दूसरा बेटा प्रकाश शुक्ला है, जो सेना में अधिकारी बनने की तैयारी में जुटा हुआ है।