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अक्षय तृतीया: आखिर क्यों अक्षय है यह तृतीया… जानिए वैदिक रहस्य

locationजबलपुरPublished: Apr 18, 2018 12:03:33 pm

Submitted by:

amaresh singh

त्रेता युग से भी है अक्षय तृतीया का खास संबंध, इस दिन किए दान का कभी नहीं होता क्षय

akshaya tritiya 2018 ka shubh muhurt and Vedic significance

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जबलपुर। अक्षय शब्द का अर्थ ही यही है कि जिसका कभी क्षय या क्षरण नहीं होता…। बैसाख शुक्ल पक्ष की तृतीया इन्हीं तिथियों में शामिल है। ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इस तिथि का महत्व दान से जुड़ा है। इस दिन किया गया थोड़ा सा भी दान आपको कई गुना बढ़कर वापस मिलता है। यह ऐसी संचित निधि बन जाता है, जो सदैव व्यक्ति के भाग्यकोष में रहती है। इसी धारणा के चलते इस तिथि कन्या के दान जैसे महान दान की परम्परा प्रारंभ हुई। दोनों कुलों को रोशन करने वाली कन्या के दान को यानी उसके पाणिग्रहण को सर्वोत्तम बताया गया है। कई लोग गुड्डे-गुडिय़ों के पूजन के माध्यम से भी इस महान परम्परा का निर्वहन करते हैं। इसके पीछे जो भाव है वह चौंकाने वाला है।
युगादि तिथि
लोकनाथ शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य पं. मथुरा प्रसाद गर्ग व ज्योतिषाचार्य पं. रामसंकोचाी गौतम के अनुसार अक्षय तृतीया युगादि तिथि है। इसे किसी युग से नहीं जोड़ा जा सकता। मान्यता है कि भारतीय काल गणना के अनुसार बैसाख शुक्ल- तृतीया से ही सतयुग और त्रेतायुग का शुभारंभ हुआ था। त्रेतायुग की प्रारंभिक तिथि होने की वजह से भी इसे ‘युगादि तिथि’कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि युगादि तिथि के दिन किसी तीर्थ, पवित्र नदी या फिर सरोवर में स्नान के बाद दान करने से एक सहस्र गायों के दान (गोदान) का पुण्यफल प्राप्त होता है।
नर-नारायण व परशुराम का अवतरण
भविष्य पुराण के अनुसार सतयुग और त्रेता युग के शुभारंभ के अलावा भगवान विष्णु के अंश के रूप में नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन माना जाता है। खास बात ये भी है कि अक्षय तृतीया को ही श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुन: खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।
क्या करें दान
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ल का मानना है कि यह तिथि दान के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन यथाशक्ति दान करने से कई व्याधियां बाधाएं तो मिटती ही हैं। इनका कई गुणा पुण्य फल भी प्राप्त होता है। इस तिथि पर शीतल जल से भरा कलश, चावल, चना, दूध, दही, सत्तू, गन्ने का रस, तरबूज आदि खाद्य पदार्थों के साथ वस्त्राभूषणों का दान पुण्यकारी होता है। अक्षय तृतीया पर दिन गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक, शहद और कन्या दान करने का महत्व है। इस दिन जितना भी दान करते हैं उसका चार गुना फल प्राप्त होता है। इसलिए इसे महादान का पर्व कहा जाता है। इस दिन माता पिता, बड़े बुजुर्गों और अपने गुरु जनों को उपहार देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। इसे कुंडली के दोषों का भी शमन होता है।
अक्षय तृतीया की कथा
अक्षय तृतीया का महत्व युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था। तब श्रीकृष्ण बोले, ‘राजन! यह तिथि परम पुण्यमयी है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम तथा दान आदि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्यफल का भागी होता है। इसी दिन से सतयुग का प्रारम्भ होता है। प्राचीन काल में सदाचारी तथा देव ब्राह्म्णों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से व्रत के माहात्म्य को सुना। कालान्तर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया। विधिपूर्वक देवी देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएं ब्राह्मणों को दान कीं। स्त्री के बार-बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीडि़त होने पर भी वह अपने धर्म कर्म और दान पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई, इसलिए उसे उच्च स्थान प्राप्त हुआ। इस तिथि पर जो भी लोग अपनी क्षमता के अनुसार दान करते हैं, उनका सदा कल्याण होता है।
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