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प्रलय में भी नहीं होगा इस नदी का अंत, विश्वभर में पूजे जाते हैं इसके पत्थर

locationजबलपुरPublished: Feb 04, 2016 08:10:00 pm

Submitted by:

Abha Sen

मां नर्मदा का प्रवाह जहां से भी जनमानस के लिए कल्याणकारी साबित हुआ।

जबलपुर। मां नर्मदा का प्रवाह जहां से भी जनमानस के लिए कल्याणकारी साबित हुआ। अपनी दिव्यता के साथ नर्मदा करोड़ों लोगों का उद्वार किया। नर्मदा कथा की अगली कड़ी में आज हम इनके जन्म के संबंध में कुछ रोचक तथ्य बता रहे हैं। कहते हैं मां नर्मदा का जन्म भगवान शंकर के पसीने की एक बूंद से हुआ। जन्म के उपरांत ही उन्होंने अपने आलौकिक सौंदर्य से ऐसी लीलाएं की, जिन्होंने भगवान शंकर और पार्वती को भी चकित कर दिया। नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है।


इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए अमरकण्टक (जिला शहडोल, मध्यप्रदेश जबलपुर-विलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर भगवान शंकर द्वारा 12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचकोशी क्षेत्र में 10,000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है।


ये हैं वरदान
प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो,मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें। विश्व में ज्यादातर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है। कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है।



शास्त्रों के अनुसार सभी देवता, ऋ़षि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। नर्मदा नदी भारत में विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतश्रेणियों के पूर्वी संधिस्थल पर मध्यप्रदेश के अमरकंटक नामक स्थान से निकलती है।
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