धरती के गर्भ से निकली थी ये अद्भुत कन्या, संपूर्ण विश्व में दिया जाता है श्रेष्ठ नारी का उदाहरण
जिसे यह चमत्कारी कन्या मिली, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज विश्व उस व्यक्ति को इसी अद्भुत कन्या के पिता के रूप में जानता है

जबलपुर। बैसाख का महीना वैसे ही पावन है, लेकिन रविवार 15 मई को एक तिथि का संयोग इसके महत्व को और भी बढ़ा रहा है। यह वही तिथि जिस दिन धरती से एक कन्या जन्मी थी, इन्हें जनक नंदनी के रूप में पहचाना गया। इसी उपलक्ष्य में जानकी जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। खास बात यह भी है कि धरती के गर्भ से जन्मी जानकी, भगवान राम के साथ अपनी भूमिका निभाकर धरती में ही समा गई थीं।
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका के होने का आभास हुआ। जमीन को खोदने पर एक बक्सा मिला जिसमें माता सीता मुस्कुरा रहीं थीं।सीता के जन्म के इस स्थान को जनकपुर के नाम से जाना जाता है। जो कि वर्तमान में नेपाल में स्थित है।

जोती हुई भूमि तथा हल के नोंक को भी सीता कहा जाता है, इसलिए बालिका का नाम सीता रखा गया था। अत: इस पर्व को जानकी नवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है।
रामतापनीयोपनिषद में सीता को जगद की आनन्द दायिनी, सृष्टि, के उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार की अधिष्ठात्री कहा गया है-
श्रीराम सांनिध्यवशां-ज्जगदानन्ददायिनी।
उत्पत्ति स्थिति संहारकारिणीं सर्वदेहिनम्॥
वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीता राम से सात वर्ष छोटी थीं।
ममभत्र्ता महातेजा वयसापंचविंशक:।
अष्टादशा हि वर्षाणि मम जन्मति गण्यते।।
रामायण तथा रामचरितमानस के बालकाण्ड में सीता के उद्भवकारिणी रूप का दर्शन होता है एवं उनके विवाह तक सम्पूर्ण आकर्षण सीता में समाहित है, जहाँ सम्पूर्ण क्रिया उनके ऐश्वर्य को रूपायित करती है। अयोध्याकाण्ड से अरण्यकाण्ड तक वह स्थिति कारिणी हैं, जिसमें वह करुणा-क्षमा की मूर्ति हैं। वह कालरात्रि बन निशाचर कुल में प्रविष्ट हो उनके विनाश का मूल बनती हैं। यद्यपि तुलसीदास ने सीताजी के मात्र कन्या तथा पत्नी रूप को दर्शाया है, तथापि वाल्मीकि ने उनके मातृस्वरूप को भी प्रदर्शित कर उनमें वात्सल्य एवं प्रेम को भी दिखलाया है। सीता ने अंत में धरती के गोद में ही अंतिम स्थान ग्रहण किया और पाताल लोक में समा गईं।
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