बन नहीं रही बात
कठौंदा के ‘वेस्ट टू एनर्जी’ प्लांट को हर रोज 600 टन कचरा चाहिए। लेकिन, शहर से 300 टन कचरा ही प्लांट पहुंच रहा है। किल्लत दूर करने के लिए राजधानी भोपाल और इंदौर के अलावा उप्र के प्रयागराज, बनारस, लखनऊ और गुजरात के अहमदाबाद, बड़ोदरा और सूरत जैसे शहरों से रोजाना लगभग 100 टन कचरा मंगाया जा रहा है। कचरे से बिजली बनाने के लिए प्लांट लगाना शहर के लिए बड़ा कदम था। दावा था कि इससे शहर कचरा मुक्त हो जाएगा। रानीताल में बना कचरे का पहाड़ हट जाएगा। कॉलानियों में डस्टबिन रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। कचरा सीधे घरों से निकलकर निगम के वाहनों मेें जाएगा। वहां से कठौंदा प्लांट पहुंच जाएगा। इसके लिए निगम ने डोर-टू-डोर’ कचरा कलेक्शन व्यवस्था लागू की।
कंपनी पर आरोप
शहर में कचरे की कमी का गणित उलझाऊ है। कुछ लोग प्लांट चलाने वाले एस्सल गु्रप पर ही आरोप लगाते हैं। उनका कहना है कि ग्रुप ‘डोर-टू-डोर’ कचरा उठा नहीं रहा। ठेका प्रक्रिया के पहले नगर निगम के अधिकारियों का कहना था कि शहर में हर रोज तकरीबन 400 टन कचरा निकलता है। ऐसे में सवाल है कि आखिर पांच साल बाद कचरा कम कैसे हो गया? कंपनी आखिर कैसे कह रही है कि 300 टन कचरा ही मुश्किल से मिल रहा है। जबकि, शहर में सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों का भुगतान भी होता रहा। नगर निगम और एस्सल ग्रुप में अनुबंध है। ग्रुप ने कठौंदा में लगभग 178 करोड़ रुपए की लागत से प्लांट लगाया है। 20 साल तक प्लांट चलाकर वह अपनी लागत निकालेगा। साथ में मुनाफा कमाएगा। इसके बाद प्लांट का स्वामित्व निगम के हाथों में आ जाएगा। मप्र सरकार ने 20 करोड़ का अनुदान भी दिया था।
ऐसा क्यों है?
एस्सल समूह ने निगम से प्रति टन कचरा खरीदने के लिए 20 रुपए तय किए हैं। इससे बनने वाली बिजली एमपी पावर मैनेजमेंट कंपनी को छह रुपए प्रति यूनिट की दर से बेचने का करार किया है। एस्सल समूह को ही कठौंदा में जमा पुराने कचरे का निष्पादन भी करना है। जानकारों के अनुसार देखा जाए, तो ठेका कंपनी दोनों तरफ से कमाई कर रही है। इसके बाद भी कचरा नहीं उठता।
सभी जोन में कचरा कलेक्शन व परिवहन की व्यवस्था में निगरानी व्यवस्था दुरुस्त की जाएगी। ताकि, कहीं भी कचरे का ढेर न लगे।
– भूपेंद्र सिंह, स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगम