ये हैं मां कूष्माण्डा
वैदिक काल से ही नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्माण्डा का पूजन और आराधन किया जा रहा है। माना जाता है कि आदि काल में चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ही ब्रम्हाजी ने सृष्टि की रचना का क्रम प्रारंभ किया था। इस क्रम में मां कूष्मांडा शक्ति के रूप में उनकी सहभागी बनीं थीं। इसलिए इन्हें सृष्टि स्वरूपा माना गया है। अष्टभुजी मां कूष्मांडा सिंह पर आरूढ़ हैं। वे हाथों में कमलपुष्प, कमंडल, चक्र, गदा व अमृतकलश आदि लिए हुए वरमुद्रा में हैं। इनका स्वरूप बेहद सौम्य, शांत व मोहक है। इनका मन में शांति, सौम्यता और त्याग के भाव जगाता है।
ऐसे करें पूजन
नवरात्र के चौथे दिन भी सूर्योदय से पूर्व जागकर स्नान करें। इसके बाद पवित्र वस्त्र धारण करें और पूजन के स्थान पर अपने लिए एक आसन या कपड़ा बिछाकर सामने ज्योति जलाएं। इसके बाद अक्षत-पुष्प आदि लेकर मां कूष्मांडा का आवाहन करें। मां को स्नान, धूप, दीप, ऋतु फल, मिष्ठान्न, चुनरी, श्रंगार, पान पत्र, मेवा आदि अर्पित करें। अंत में श्रद्धापूर्वक सपरिवार मां की आरती करें। दिन भर मां का चिंतन करें और ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करें। ऐसा करने से मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं और इच्छित वर प्रदान करती हैं। मां बुद्धि की प्रखरता को बढ़ाती हैं। आरोग्य प्रदान करती हैं और सृजन, प्रगति व उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
ये भी है दर्शन
ज्योतिषाचार्र्य पं. स्व. हरिप्रसाद तिवारी की पुस्तक के अनुसार पहला दिन शैलपुत्री का है यानि संकल्प चट्टान की तरह होना चाहिए। दूसरा दिन ब्रम्हचारिणी का है। इसका मतलब यही है कि संकल्प की पूर्ति के लिए एक ब्रम्हचारी की तरह सादगीयुक्त होकर जुटना चाहिए। चकाचौंध में फंस जाने वालों की सफलता संदिग्ध होती है। तीसरा दिन सिंहारूढ़ मां चंद्रघंटा का है जो बताता है कि संकल्प की पूर्ति के लिए पूरे सामथ्र्य के साथ जुट जाना चाहिए, लेकिन धैर्य नहीं खोना चाहिए। मां कूष्माण्डा का स्वरूप यही दर्शाता है कि धैर्य के साथ काम करने से ही आपके लिए प्लेटफार्म यानी लक्ष्य की पृष्ठभूमि का सृजन होता है। वरदायक मां उसमें सहायता करती हैं। स्कंदमाता का पंचम स्वरूप भी यही बताता है कि जब संकल्प पक्का हो तो वह पूरा ममत्व छलकाकर भक्तों की सहायता करती हैं। जीवन संघर्ष में जीत को सुनिश्चित कराती हैं।