मेडिकल कॉलेज में डायलिसिस के लिए पांच बेड हैं। इसकी दो मशीनें लम्बे समय से बंद हैं। बाकी तीन मशीनों में भी दो के आरओ प्लांट के पैनल कुछ दिन से खराब हैं। सिर्फ एक बेड पर ही डायलिसिस हो रही है। इससे डायलिसिस के लिए वेटिंग बढ़ रही है। कुछ मरीज निजी अस्पतालों में मोटी फीस देकर डायलिसिस करा रहे हैं। केंद्र सरकार की योजना के तहत सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाया गया है। प्रदेश में सरकार बदलने के बाद हॉस्पिटल के अधूरे कार्यों को पूरा करने की प्रक्रिया धीमी पड़ गई है। हॉस्पिटल में नैफ्रोलॉजी विभाग के जिम्मेदारों की ढिलाई भी डायलिसिस यूनिट के संचालन पर भारी पड़ रही है। वहीं, जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की अनदेखी से केंद्र के अधिकारियों पर दबाव नहीं बन पा रहा है। दिल्ली के अधिकारियों की मनमानी से डायलिसिस यूनिट का काम लगातार पिछड़ रहा है।
150 करोड़ रुपए का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल
-50 करोड़ रुपए के उपकरण (नैफ्रोलॉजी सहित अन्य विभागों के)
-30 डायलिसिस मशीनें सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में आयीं थीं।
-12 मशीनें बाद में इंदौर सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल भेज दी गईं।
-18 मशीनें सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में फिलहाल लगाई गई हैं।
-06 महीने से ज्यादा समय होने के बावजूद यह मशीनें शुरू नहीं हुई।
-05 डायलिसिस मशीनें मेडिकल कॉलेज में हैं। इनमें चार खराब हैं।
-10 मरीज अभी डायलिसिस के प्रतिदिन मेडिकल में आते हंै।
-04 मरीजों का अधिकतम अभी एक दिन में डायलिसिस हो पा रहा है।
-15 से ज्यादा मरीज औसतन प्रतिदिन नैफ्रोलॉजी की ओपीडी में आते है।
-02 हजार रुपए औसतन निजी अस्पताल में एक बार डायलिसिस का शुल्क।
-04 हजार से ज्यादा किडनी रोगी, सप्ताह में एक से दो दिन डायलिसिस की जरूरत
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल डायरेक्टर डॉ. वायआर यादव ने बताया कि डायलिसिस यूनिट में 18 मशीनें हैं। इससे सम्बंधित कुछ व्यवस्थाओं के लिए पत्राचार किया जा रहा है। जल्द ही जरुरतों का पूरा कर लिया जाएगा। मरीजों को जल्द से जल्द से डायलिसिस सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रयास कर रहे हैं।