जबलपुर

अजब स्कूल… पूरी क्लास में महज 2 बच्चे और टीचर भी नींद में

स्टिंग में सामने आयी चौंकाने वाली सच्चाई

जबलपुरOct 16, 2018 / 03:40 pm

Premshankar Tiwari

amazing school with only two students

 

जबलपुर। प्रदेश को साक्षर करने का अभियान चंद हाथों की कठपुतली बन गया है, जिससे बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शिक्षा के गिरते स्तर से सरकारी स्कूलों से बच्चों का मोह छूटने लगा है। बच्चों की उपस्थित कम होने से पढ़ाई में मनमानी की जा रही है। एक्सपोज टीम ने स्कूलों की पड़ताल की तो चौकाने वाली स्थिति सामने आई है, जहां जर्जर स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या कम थी। अध्यापन ठप था। क्लास रूम खाली पड़े थे। पढ़ाने वाले सो रहे थे। बच्चों से बातचीत की गई है तो हकीकत यह थी कि बच्चों का भाषा पर ही नियंत्रण नहीं था। स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर पर एक्सपोज की रिपोट…।

छत ही जर्जर
शहर के करीब दस-बारह सरकारी स्कूल जर्जर हो चुके हैं। इन स्कूलों की हालत खराब है। इन स्कूलों में अध्ययन-अध्यापन किया जा रहा है लेकिन स्कूलों की दशा में कोई सुधार नहीं किया गया है। स्कूलों की हालत यह हो गई है कि बारिश में पानी टपकता है तो अन्य दिनों में धूल से क्लास रूमों की हालत दयनीय हो जाती है। ऐसे वातावरण में बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। पढ़ाई के वातावरण से दूर हो रहे इन स्कूलों में बच्चों का मोह छूट रहा है तो वहीं अध्यापन में जुटे लोगों में भी नीरसता आ गई है, जिससे शिक्षा देने के नाम पर खानापूति की जा रही है।

कम हो रही उपस्थिति
स्कूलों की गिरती स्थिति की वजह से बच्चों की संख्या तो ठीक है लेकिन नियमित रूप से उनकी उपस्थिति गिरती जा रही है। शहर के दो स्कूलों का जायजा लिया गया है जिसमें एक कक्षा में दो बच्चे और दूसरी कक्षा में पांच बच्चे थे। दूसरे स्कूल की स्थिति तो यह थी कि वहां कक्षा एक से लेकर पांचवी तक के बच्चों को एकत्र करके बिठाया गया था, जिसमें बच्चों की संख्या मात्र दस थी।
ये थी हकीकत

कनिष्ठ बुनियादी
स्कूल का भवन जर्जर हो चुका है। भवन के कबेलु में वनस्पति पैदा हो गई हैं। जगह-जगह शीपेज की वजह से प्लास्टर गिरने की कगार पर है। मकड़ी के जाले सालों से निकाले नहीं गए हैं। फर्श टूट रहा है। ऐसे वातावरण में चंद बच्चे जमीन पर बैठकर अध्ययनरत थे। बच्चे कम होने की वजह से सभी को एक क्लास में बिठाया गया था, जहां दो टीचर थे। बच्चों से जब अध्ययन के बारे में पूछताछ की गई तो बच्चों का जवाब सटीक था लेकिन उनमें दब्बूपन था, जो बेहतर शिक्षा की ओर इशारा नहीं था।

कस्तूरबा स्कूल
सत्तर के दशक में इस स्कूलों में बच्चों की संख्या अच्छी खासी थी लेकिन सरकारी स्कूल में शिक्षा के गिरते स्तर से बच्चों की संख्या कम होती चली गई और अब यह स्थिति हो गई है कि यह स्कूल चंद कमरों तक सीमित हो गया है। स्कूल की हालत यह थी कि एक कक्षा में मात्र पांच विद्यार्थी थे। वरांडे में मात्र दो विद्यार्थी बतौर क्लासरूम बैठे हुए थे। अन्य कक्षा में टीचर सो रही थी। स्कूल में सामने रंग-रोगन कर दिया गया लेकिन अंदर से जर्जर था।

टीचर्स से बातचीत

सवाल – स्कूल की आज छुट्टी है क्या?
जवाब – नहीं तो।

सवाल – तो फिर बच्चों की संख्या तो बहुत कम है?
जवाब – फेस्टिवल मूड है, इसलिए बच्चे कम आए हैं।

सवाल – तो क्या सभी कक्षाओं की स्थिति यही है?
जवाब – नहीं, यहां तो सभी क्लास के बच्चों को बिठाया गया है।

सवाल – तो फिर तो पढ़ाई प्रभावित हो रही होगी?
जवाब – हां, कुछ हद तक तो होगी ही।

सवाल – यहां सफाई नहीं होती है क्या?
जवाब – क्या करें, स्कूल में चपरासी नहीं है।

सवाल – तो फिर सफाई कैसे होती है?
जवाब – हम ही लोग करते हैं और जरूरत होती है तो बच्चे भी मदद करते हैं।

सवाल – लेकिन इसके लिए विभाग को नहीं लिखा जाता है?
जवाब – लिखा जाता है लेकिन क्या करें, कुछ नहीं होता है।

सवाल – अन्य कक्षाओं के भी यही हाल है क्या?
जवाब – बाजू का कमरा स्पोर्टस के बच्चों को दे दिया गया है, जिससे यहां दो क्लास एक कक्षा में ही लगाई जा रही है।

चल रहा है उन्नयन
स्कूलों के उन्नयन का कार्य चल रहा है। पुराने हो चुके भवनों की जगह नए भवन बनाए जा रहे हैं। कुछ स्कूलों को मर्ज किया गया है। नए भवनों के तैयार होते तक कुछ असुविधा हो सकती है लेकिन शिक्षा का स्तर बनाए रखने में कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही है।
कामायनी कश्यप, डीईओ

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