ग्वारीघाट स्थित नाग मंदिर के सामने खुले आसमान तले पाठशाला लग रही है। इसमें उन बच्चों को पढ़ाया जाता है, जो घाट पर भिक्षावृत्ति से जीवन यापन करने को मजबूर हैं। इनमें से कुछ बच्चों का नाम स्कूल में लिखा है, लेकिन वे नियमित रूप से स्कूल जा नहीं पाते। तीसरी कक्षा से लेकर 11वीं तक के बच्चे यहां पढऩे आते हैं। दो साल से पाठशाला का संचालन करने वाले पराग का मानना है कि इनमें से भी कोई बच्चा कलेक्टर बन सकता है, तो एसपी।
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कोई बनना चाहता है आइएएस, तो कोई आइपीएस,
घाट पर बच्चों को मिल रही 365 दिन नि:शुल्क शिक्षा
नर्मदा तट पर बह रही है ‘ज्ञान की गंगा’
स्ट्रीट लाइट का सहारा
पराग की यह पाठशाला घाट पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी में चलती है। घाट पर बच्चे पंक्ति बनाकर बैठते हैं। उनके सामने एक कुर्सी रहती है। उस पर मां नर्मदा की फोटो और उसके सहारे टिका सफेद रंग का बोर्ड रहता है।
40 प्रतिशत बच्चे नहीं जाते स्कूल
पराग ने बताया कि ग्वारीघाट, ग्वारीघाट बस्ती व तिलहरी में तमाम बच्चे ऐसे हैं, जो स्कूल में पढ़ाई करने की इच्छा रखते हैं। लेकिन, पहुंच नहीं पा रहे। बच्चों के पास आधार कार्ड न होने की वजह से वे स्कूली शिक्षा से वंचित हो रहे हैं।
अफसरों को देखने की चाह
दीपक, लीला, पूनम, रश्मि आदि बच्चों का कहना है कि वे भी और लोगों की तरह अपना नाम रोशन करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि घाट पर प्रशासनिक अफसर तो आते हैं और दर्शन कर चले जाते हैं। बच्चों ने अफसरों से रूबरू होने की इच्छा जताई। बच्चों का मानना है कि यदि प्रशासनिक अफसर उनका टैलेंट देखेंगे, तो इससे उनका उत्साह बढ़ेगा। घाट पर 365 दिन कक्षा लगती है। बारिश के दिनों में घाट पर बनीं दुकानों के शेड के नीचे बच्चों को पढ़ाया जाता है।
मूवी से लेकर सीवल्र्ड का मजा
पराग अपनी हर खुशी गरीब, जरूरतमंद बच्चों के साथ मनाते हैं। बच्चों में ऊंच नीच की भावना न हो इसका ध्यान रखा जाता है। यही वजह है कि वे मॉल में पिक्चर दिखाने से लेकर बच्चों को सीवल्र्ड भी ले जाते हैं।
चंद मिनट में हल कर देते हैं सवाल
ये बच्चे गणित के जटिल सवालों को चंद मिनट में हल कर देते हैं। बच्चों की पकड़ विज्ञान, इतिहास से लेकर भूगोल तक है। वहां पढ़ाई करने वाले दीपक ने ब्लड के प्रकार और उनसे जुड़ी बारीकियों के बारे में बताया। लक्ष्मी, सनी, रुचि, जित्तू ने विभिन्न सवालों का जवाब धारा प्रवाह दिया। पराग का दावा है कि इन बच्चों को टैलेंट दिखाने का मौका मिले, तो नामचीन स्कूलों के बच्चों को भी टक्कर दे सकते हैं।
मां से मिली प्रेरणा
पराग का कहना है कि शिक्षा का दान उन्हें उनकी मां की प्रेरणा से मिला। वर्ष 2016 में मां का स्वास्थ्य खराब होने के कारण स्वर्गवास हो गया था। अंतिम क्षणों में उन्होंने गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा और उनके के लिए स्कूल खोलने की बात कही थी।
अपनी कमाई गरीबों पर खर्च
पराग प्राइवेट कोचिंग चलाते हैं। वहां मिलने वाली फीस वे गरीब बच्चों और उनके परिवार पर खर्च करते हैं। वे बताते हैं कि शुरुआती दिनों में घाट पर ओपन क्लास शुरू की गई, तो इक्का-दुक्का बच्चे ही शामिल होते थे। लेकिन, धीरे-धीरे बच्चों को पढ़ाई के प्रति जागरूक किया गया। अब यहां 60 से अधिक बच्चे रोजाना समय से पहले ही पहुंच जाते हैं।