अपनी 9 सूत्रीय मांगों को लेकर हम 30 साल से लड़ रहे हैं। किसी सरकार ने नहीं सुनी। जब तक उनकी मांग पूरी नहीं की जाती तब तक काम पर नहीं लौटेंगे। यह चेतावनी सोमवार को महिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी, आशा और ऊषा कार्यकर्ता व पर्यवेक्षकों ने दी। उन्होंने नारेबाजी करते हुए सिविक सेंटर में धरना दिया। फिर वहां कलेक्टर कार्यालय तक रैली निकालते हुए ज्ञापन दिया।
संयुक्त मोर्चा आईसीडीएस परियोजना अधिकारी संघ, पर्यवेक्षक संघ और आंगनबाड़ी कार्यकता व सहायिका संघ की ओर से की जा रही अनिश्चितकालीन हड़ताल के कारण शासन की योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि लगातार अपनी मांगों से शासन को अवगत कराया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो सकी है। उनकी वेतन विसंगति को दूर नहीं किया जा रहा है। इस अवसर पर डॉ. कांता देशमुख, गौरीशंकर लौवंशी, माधव सिंह यादव, वीकेश राय, प्रशांत पुराविया, रितेश दुबे, मंजू दूबे, गरिमा खरे, आरती पांडे, कल्पना पटेल, प्रमिला खातरकर, रेनू पांडे, मीता चौधरी, विद्या खंगार ने कहा कि जब तक सरकार हमारी मांगों पर विचार नहीं करती, वे आंगनबाड़ी नहीं जाएंगी।
जिले में दो हजार 483 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। वे 15 मार्च से नहीं खुल रहे हैं। परियोजना अधिकारी, पर्यवेक्षक, आंगनबाडी कार्यकर्ता और सहायिकाओं की हड़ताल है। इसी प्रकार स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत आशा और ऊषा कार्यकर्ताओं ने काम बंद कर रखा है। दोनों विभागों का अमला हड़ताल पर होने के कारण इनसे जुडे हितग्राही परेशान हैं। बच्चों को पोषण आहार नहीं मिल पा रहा है। वे दूसरे बच्चों के साथ आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर खेल भी नहीं पा रहे हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए यह अमला बहुत काम करता है। वे अस्पताल में नियमित जांच के अलावा आंगनबाड़ियों में होनी वाली गतिविधियों का लाभ नहीं उठा पा रही हैं। पोषण पुनर्वास केंद्रों में आशा और ऊषा कार्यकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनकी हड़ताल से बच्चों की देखरेख से लेकर टीकाकरण का काम प्रभावित हो रहा है। जिला चिकित्सालय के अलावा दूसरी जगहों पर संचालित पुनर्वास केंद्र इससे बुरी तरह प्रभावित हैं।