नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग (ओटी) में हर साल 400 से 450 लोगों की आंकोलॉजी सर्जरी की जाती है। आंकोलॉजी की सर्जरी में उस अंग को शरीर से अलग कर दिया जाता है, जहां कैंसर होता है। जबकि सर्जरी के बाद शरीर पर दाग का जख्म जीवन भर बना रहता है। ऐसे जख्म भरने का काम करती है प्लास्टिक सर्जरी। प्लास्टिक सर्जरी से महिलाओं के ब्रेस्ट तक को बनाया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज सर्जरी विभाग के डॉक्टर कैंसर की सर्जरी मेें उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।
बिना उपकरण के ही कर दी सफल सर्जरी
मेडिकल कॉलेज के आंको सर्जन डॉ. अर्पण मिश्रा बताते हैं कि गुदाद्वार के कैंसर की सर्जरी में पेट में नली डालकर बैग सेट करके कुछ दिनों के लिए गुदाद्वार बंद कर देते हैं। गुदाद्वार को बंद करने से बचाने के लिए 60-70 हजार रुपए का स्टेपलर नामक उपकरण लगाया जाता है, लेकिन सर्जन डॉ. धनंजय शर्मा व डॉ. विकेश अग्रवाल ने धागे के प्रयोग से सर्जरी की और बिना गुदाद्वार बंद किए सर्जरी सफल हो गई। इसके लिए उन्हें मप्र राज्य सर्जन कॉन्फ्रेंस में यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड मिला। थाइलैंड में सर्जन कॉन्फ्रेंस में एएसएलएआर टेक्निक सर्जरी की सराहना हुई।
पैर की हड्डी से बना रहे जबड़ा
मेडिकल कॉलेज के प्लास्टिक सर्जन डॉ. पवन अग्रवाल ने बताया कि कैंसर सर्जरी में प्रभावित अंग के साथ ही आसपास के कुछ अंग भी निकाले जाते हैं, ताकि दोबारा इंफेक्शन की आशंका बहुत कम हो जाए। मुंह या ब्रेस्ट की सर्जरी में घाव ठीक होने के बाद भी मरीज पर साइक्लोजिकल डिफेक्ट होता है। बॉडी इमेज खराब हो जाती है। ऐसी स्थिति में पैर की हड्डी से जबड़ा और इसी प्रकार मांसपेशियां बनाई जाती हैं। प्लास्टिक सर्जरी से कैंसर के मरीज की बॉडी इमेज, फंक्शन और साइक्लोजिकज प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती है।