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अजब है… 25 अंडे और 6 लीटर दूध पीता है कलियुग का ये कंस, दीवाने हैं कई परिवार

locationजबलपुरPublished: Dec 25, 2018 05:08:54 pm

Submitted by:

Premshankar Tiwari

अनूठी है गीतांजलि और कंस की ये कहानी

unique story of Kaliyugi kansh

अनूठी है गीतांजलि और कंस की ये कहानी

ज्ञानी रजक@जबलपुर। कुछ समय में सेना का डेयरी फॉर्म इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएगा। रह जाएंगी कुछ मीठी और खुशनुमा यादें..। अब यहां के कर्मचारी फॉर्म के दिलचस्प किस्सों को याद भी करते हैं। वह कहते हैं क्या दिन थे जब फॉर्म की सभी गौशालाएं तंदुरुस्त गायों और सांडों से भरी रहती गीतांजलि नाम की फ्रीजन गाय तो दिनभर में 60 से 70 लीटर तक दूध देती थी। वहीं कंस नाम का सांड का विशाल काय सांड अंडों को शौक से खाता था। वह कई लीटर दूध भी पी जाता था।

एक से बढकऱ एक गाय
फॉर्म के कर्मचारी बताते हैं कि 1984-85 में फॉर्म की इस गाय की दूध की क्षमता पर न केवल कर्मचारी बल्कि सेना के अधिकारियों में भी खूब चर्चा रहती थी। गाय की विशेष देखदेख होती थी। दूधिया दूध दुहते थक जाता था लेकिन उसकी मात्रा कम नहीं होती थी। हाथी के आकार की यह उच्च नस्ल की गाय का दूध के मामले में रिकॉर्ड अब तक नहीं टूटा है। इतने दूध के लिए उसकी खुराक भी अच्छी रही। यदि ऐसी गाय को प्रति लीटर दूध प्रति किलो खुराक दी जाती थी। इसमें 80 फीसदी खाना विभिन्न प्रकार की हरी घास होत थी तो 20 फीसदी सूखा खाना यानि भूसा और खली चुनी होती थी।

सांड ने जीते थे 5 अवार्ड
कंस नाम के सांड की पूरे फॉर्म में तूती बोलती थी। उसे देखने के लिए बाहर से लोग भी फॉर्म में आते थे। कर्मचारी बताते हैँ कि 1996 में बिलासपुर में बैलों की प्रदर्शनी लगाई गई थी जिसमें सात राज्यों से लोग अपने बैलों को लेकर आए थे। उस समय 16 में से जबलपुर के सेना डेयरी फॉर्म ने लगभग सारे अवार्ड जीते थे। इसमें चार से पांच अवार्ड तो केवल कंस ने जीते थे। फ्रीजन प्रजाति का यह सांड को रोजाना एक से डेढ़ लीटर घी पिलाया जाता था। 20 से 25 अंडे और 5 से 6 लीटर दूध रोजाना पिलाया जाता था। इसके अलावा वह 25 किलो खुराक भी खाता था।

कई परिवारों का था लगाव
कर्मचारियों ने बताया कि सेना के डेयरी फार्म से सैनिकों के परिवार जनों के यहां दूध जाता था। शुद्ध और ताजा के लिए कई बारगी तो जरूरतमंद बाहरी लोग यानी सिविलियंस भी यहां आ जाते थे। नियमों का हवाला देकर उन्हें मना करना पड़ा था। सैनिकों के परिजन बताते हैं कि डेयरी फार्म का दूध बेहद शुद्ध और गाढ़ा होता था। इसका स्वाद भी लाजवाब था। अब वैसा दूध शायद ही कभी मिल पाए। कई जरुरतमंद तो ऐसे भी थे, जो अपने बीमार परिजनों या बच्चों के लिए कुछ दिन के लिए सैनिकों के परिवारों से व्यवहार में दूध ले लेते थे। इनका मानना था कि सफाई व शुद्धता के मामले में यहां के दूध का कोई मुकाबला नहीं रहा। उस ताजे, मीठे दूध और फार्म की गठीली सुंदर गायों की यादें कर्मचारियों ही नहीं बल्कि कई सैन्य परिवारों के मानस पटल पर भी आजीवन जीवंत रहेंगी।

अब बछड़े और बछिया बचीं
फॉर्म में आखिरी समय में बड़ी गाय कम वहीं बछड़े एवं बछिया ज्यादा हैं। बची हुई गाय की ढुलाई भी अगले दो दिनों के भीतर हो सकती है। रविवार से लगातार पांच ट्रकों में गाय फॉर्म से भेजी जा रही हैं। इसके बाद बछड़ों को ले जाया जाएगा। बताया गया है कि कई लोगों ने यहां की बछियों की डिमांड भी की है, लेकिन सेना के नियमों के कारण उन्हें इन सुंदर बछड़े व बछियों से वंचित रहना पड़ा है।

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