गुरुवार को न्यायमूर्ति दिनेश कुमार पालीवाल की ग्रीष्म अवकाशकालीन एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी मोनाली बल्दी व नेहा पाटीदार की ओर से अधिवक्ता अंशुल तिवारी ने पक्ष रखा। उन्हाेंने दलील दी कि सामान्य वर्ग के अंतर्गत आने वाली दोनों याचिकाकर्ताओं ने पीएससी-2020 प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले सफल अभ्यर्थियों की पहली सूची में उनके नाम थे। लेकिन, बाद में पीएससी ने संशोधित सूची जारी कर दी। इसमें याचिकाकर्ताओं सहित छह के नाम अलग कर दिए गए। इसके विरुद्ध आपत्ति दर्ज कराते हुए आवेदन प्रस्तुत किया गया। कोई नतीजा न निकलने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि परिणाम विचाराधीन याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होंगे।
एफआइआर में गम्भीर आरोप, याचिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकते इधर दूसरे मामले में हाईकोर्ट ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के अधिकारियों से अभद्रता करने और शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने वाले निष्कासित छात्र को राहत देने से इनकार कर दिया। जस्टिस एमएस भट्ठी ने याचिकाकर्ता छात्र अभिनव तिवारी की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें निष्कासन को चुनौती दी थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता छात्र के निष्कासन को सही मानते हुए कहा कि एफआइआर में आरोप गम्भीर हैं, इसलिए याचिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।जबलपुर निवासी अभिनव तिवारी ने याचिका दायर कर मांग की थी कि विवि के 11 अप्रेल 2023 के उस आदेश को निरस्त करने की मांग की थी, जिसके तहत उसे निष्कासित किया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि वह नियमित छात्र था और 10 अप्रेल की घटना से उसका कोई वास्ता नहीं था। विवाद अधिकारियों और हॉस्टल छात्रों के बीच हुआ था। 10 अप्रेल को रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलसचिव के कक्ष में घुसकर शिक्षण विभाग के तीन छात्र अभिनव तिवारी, सोमदत्त यादव तथा सुरेंद्र कुशवाहा ने अभद्रता की। प्रशासन ने छात्रों के खिलाफ सिविल लाइन थाने में एफआइआर दर्ज कराई थी। घटना के अगले दिन विवि के प्रॉक्टोरियल बोर्ड की बैठक में तीनों छात्रों को निष्कासित करने का निर्णय लिया गया।