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आयुर्वेद ने बढ़ाई औषधीय पौधों की खेती

locationजबलपुरPublished: Oct 15, 2019 12:11:31 pm

Submitted by:

Mayank Kumar Sahu

बीस फीसदी तक बढ़ी खेती, दो दर्जन प्रजातियों की हो रही खेती, कृषि विवि के साथ वीयू भी दे रहा प्लेटफार्म, खुद बीज तैयार कर कंपनियों को बेचने में लगे, लाभ के धंधे से जोडकऱ देख रहे किसान

Medicinal plants

Medicinal plants

फैक्ट फाइल
-1000 किसान खेती से जुड़े
-2500 एकड़ में हो रही फसल
-24 प्रकार की औषधीय फसलें उत्पादित
-5 लाख पौधे सतावर के वितरित
-300 किसानों को चंसूर के बीज वितरित
-250 किसान ले रहे सलाह
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यह कर रहे काम
-कृषि विश्वविद्यालय
-वेटरनरी विश्वविद्यालय
-उद्यानिकी विभाग
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इन औषधीय पौधो की खेती
अश्वगंधा, कालमेघ, अमेरिकन तुलसी, पथरचूर, सफेद मूसली, आमा हल्दी, सालपर्णी, बच, मंडूकपर्णी, एलोवरा, पुदीना, भ्रंगराज, मुनगा, गिलोय, नीबू घास, अर्जुन, नीम, करंज, इस्टीविया, सफेद सदाबहार आदि


मयंक साहू @ जबलपुर .

आयुर्वेद की तरफ से तेजी से बढ़ते रुझान एवं देशी विदेशी एफएमसीजी कंपनियों द्वारा भी आयुर्वेद से जुड़े उत्पादों को प्रमुखता दिए जाने के कारण अब खेती में भी औषधीय खेती की मांग बढऩे लगी है। आज से करीब पांच साल पहले जहां बमुश्किल से महाकौशल क्षेत्र में ५ फीसदी लोग ही शौकिया तौर पर औषधीय खेती की पौधी खेती कर रहे थे जो अब बढक़र २० फीसदी तक पहुंच गया है। भविष्य की खेती और किसानों की आय दो गुनी में फायदेमेंद को देखते हुए जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से लेकर वेटरनरी विश्वविद्यालय भी अब औषधीय पौधों की खेती को प्रमोट करने में लगा हुआ है। औषधीय पौधों के निर्माण से लेकर बीज, फूलों को मेडिकल कंपनियो को बेचा जा रहा है।

1000 किसान कर रहे खेती
सूत्रों के अनुसार जबलपुर और उससे जुड़े मंडला, डिंडौरी जिले में करीब 1000 किसान इस समय औषधीय पौधों की खेती कर रह हैं। जबलपुर में ही ऐसे किसानों की संख्या करीब 400 के लगभग बताई जाती है। इसमें मुख्य रूप से शतावर, अश्वगंधा, एलोवेरा, तुलसी, सफेद मूसली, गिलोय, तुलसी, भ्रंगराज जैसे औषधीय पौधों की खेती कर रह हैं।

2500 एकड़ में औषधीय खेती
कृषि विश्वविद्यालय द्वारा करीब 2200 से 2500 एकड़ में औषधीय पौधों की खेती शुरू की गई है। करीब एक साल की मेहनत के बाद अब यह औषधीय पौधे लहलहाने लगे हैं। 25सौ एकड़ में करीब 12 से अधिक औषधीय प्रजातियां उंगाई जा रही है। अधिकांश पौधे एवं बीज सीधे किसानों को वितरित किए जा रहे हैं।

600 किलो बीज का उत्पादन
वेटरनरी विश्वविद्यालय द्वारा करीब 8 एकड़ में औषधीय वाटिका को विकसित किया गया है। वेटरनरी विश्वविद्यालय द्वारा पहली बार 600 किलो बीजों का उत्पादन कर इतिहास रचा है। इसमें से करीब 500 किलो बीज जहां आयुर्वेद कंपनी बेचा गया तो वहीं बाकी किसानों को दिया गया। वाटिका में दो दर्जन से अधिक औषधीय पौधों की खेती की जा रही है।

एफएमसीजी में विशेष मांग
जबलपुर एवं आसपास के क्षेत्रों में आयुर्वेद उत्पादों से जुड़ी कंपनियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। कई ब्रांड शहर के किसानों से औषधीय पौधे मुंहमांगे दाम पर खरीद रहे हैं। इसका उपयोग तुलसी अर्क, गुलाब जल, गैस चूर्ण, टॉनिक, साबुन, तेल जैसे ढेरो उत्पादों में किया जा रहा है। 20 से अधिक फास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) से जुड़ी बड़ी देशी कंपनियां भी आयुर्वेद बाजार में है।

-औषधीय पौधों की खेती 20 फीसदी बढ़ी है जो यह बताती है कि अब धीरे-धीरे किसान इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। हम औषधीय पौधों का निर्माण करने के साथ ही बेहद सस्ते दाम में इसे किसानों तक उपलब्ध कराने में जुटे हैं।
-डॉ.ज्ञानेंद्र तिवारी, विशेषज्ञ कृषि विवि
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-औषधीय वाटिका के रूप में कुछ वर्ष पहले काम शुरू किया गया था जो आज साकार रूप लेने लगा है। 600 किलो बीज का उत्पादन करने के साथ किसानों को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं।
-डॉ.पीडी जुयाल, कुलपति वीयू

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