जबलपुर। संजय टाइगर रिजर्व सीधी के कंजरा बाड़े में सात माह से पल रही युवा बाघिन जंगल की रानी बन गई। उसे बांधवगढ़ की लाड़ली कहा जाता है। जब वह डेढ़ माह की थी तो टेरिटोरिया फाइट में उसकी मां की मौत हो गई। जंगल में अनाथ शावकों का जीना मुश्किल होता है। एक तो वे शिकार नहीं कर पाते, दूसरे अन्य बाघ उन्हें मार देते हैं।
वनकर्मियों ने उसे मौत से उबारा और बहरहा बाड़े में पाला। शिकार के दांव पेंच भी सिखाए। बाघिन को मंगलवार को दुबरी रेंज में आजाद किया गया। उसकी टेरीटेरी उस बाघ टी-005 के दायरे में होगी, जिसने एक जुलाई 2015 को बाघ-पी-212 को मारकर टाइगर रिजर्व के 100 किमी जंगल पर राज करना शुरू कर दिया। जबकि बाघिन की टेरीटरी 8-10 किमी ही होती है। डायरेक्टर दिलीप कुमार ने बताया कि लाड़ली शिकार के दांव-पेंच सीख चुकी है।