यह है मामला- जबलपुर निवासी असिता दुबे, भोपाल की ऋचा पांडे व सुमन सिंह ने याचिका में कहा कि संविधान के अनुच्छेद-16 में प्रावधान है कि एसीएसटी-ओबीसी को मिलाकर रिजर्वेशन का परसेंटेज 50 से अधिक नहीं हो सकता। इसके बावजूद राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से अध्यादेश लाकर अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रतिशत 27 कर दिया। अधिवक्ता आदित्य संघी ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण को अवैधानिक बताया।
सुको के स्पष्ट दिशानिर्देश का उल्लंघन-
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ७ जजों की बेंच के 1995 में इंदिरा साहनी के केस में दिए फैसले के अनुसार 50 फीसदी से अधिक आरक्षण संभव नहीं है। वर्तमान में अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 20 प्रतिशत व ओबीसी के लिए १४ प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। इसके बावजूद २७ फीसदी आरक्षण असंवैधानिक है। बुधवार को अतिरिक्त महाधिवक्ता शशांक शेखर ने जवाब के लिए समय की मांग की।
एकता मंच ने दायर की हस्तक्षेप याचिका
ओबीसी, एससी, एसटी एकता मंच की ओर से बुधवार को हस्तक्षेप याचिका में कहा गया कि 1931 की जनगणना के अनुसार देश में ओबीसी की जनसंख्या 57 प्रतिशत है। इसलिए ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए। अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक आरक्षण के मुद्दे पर सुनवाई केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है। कोर्ट ने इसपर भी जवाब मांगा।