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चिंता का विषय : इस शहर से क्यों रूठ रहे मेहमान परिंदे

locationजबलपुरPublished: Nov 21, 2019 12:37:52 pm

Submitted by:

shivmangal singh

यहां के सरोवरों में विदेशी पक्षी करते थे अठखेलियां, प्रकृति दूतों को देखकर खिल उठता था लोगों का मन

चिंता का विषय : इस शहर से क्यों रूठ रहे मेहमान परिंदे

चिंता का विषय : इस शहर से क्यों रूठ रहे मेहमान परिंदे

जबलपुर. संस्कारधानी की पहचान प्रकृति और पक्षी प्रेमी के रूप में रही है। यहां के लोग परिंदों से बेतहाशा प्यार करते हैं। इसी का नतीजा है कि यहां पर देशी-विदेशी लगभग 300 प्रजातियों के पक्षी घरौंदा बनाते हैं। महीनों यहां पर डेरा डाले रहते हैं। सरोवरों और नर्मदा की गोद में अठखेलियां करते हैं। हालांकि अब इसमें बदलाव आ रहा है। कुछ बेरहम लोग पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाकर परिंदों की जान के दुश्मन बन गए हैं। इससे बाहरी पक्षी आने में अब ठिठकने लगे हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार हाल के वर्षों में पक्षियों के आने की संख्या लगातार घट रही है, जो यहां के लिए बहुत बड़े खतरे का संकेत है।


आकर्षण का केंद्र रहा जबलपुर
‘उन दरख्तों को न छेड़ो जहां बस्तियां हैं परिंदों की, किसी को नहीं मिला चैन उजाड़कर इन्हें, नींद भी मयस्सर नहीं होती ये मंजर देखकर अब हमें…Ó किसी शायर के यह अल्फाज आज के परिवेश में सटीक बैठते हैं। अपनी मनोरम प्राकृतिक छटा के साथ सर्वाधिक ताल-तलैया वाला जबलपुर शहर एक समय देशी-विदेशी परिंदों की मेहमान नवाजी के लिए मशहूर था। पक्षियों की चहचहाहट, उनका शोर वृक्षों से लेकर जलाशयों में हर जगह देखा और सुनाई देता था। शहर का प्राकृतिक वातावरण और आबोहवा विदेशी पक्षियों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है। पक्षी देश-विदेश से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर खिंचे चले आते थे। यह स्थित डेढ़ दशक पूर्व तक शहर में थी। लेकिन, मनुष्य ने अपने एेशो आराम के लिए अंधाधुध वृक्षों की कटाई कर परिंदों के आशियानों को उजाड़ दिया तो रही-सही कसर जलाशयों, खेतों में कीटनाशकों का उपयोग करके उनका निवाला भी छीन लिया। आज हालात यह है कि न तो अब परिंदे बचे हैं न ही परिंदों की खबर लेने वाले। जबलपुर शहर में कभी 11० प्रकार के पक्षियों को देखा जाता था, लेकिन आज हालात यह हो गए हैं कि अब गिनती के पक्षी ही शहर में नजर आते हैं। यदि हम अब भी नहीं जागे तो आने वाली पीढ़ी को किताबों में ही परिंदों की कहानी मिलेगी।


भरतपुर की बर्ड सेंचुरी जैसा होता था नजारा
पक्षी विशेषज्ञों ने बताया कि पनागर के तलाब में एक समय भरतपुर की बर्ड सेंचुरी जैसा नजारा दिखाई देता था। शहरी क्षेत्र से दूर तालाब में पक्षियों के झुंड के झुंड आते थे। कुछ एेसा ही नजारा बरगी, संग्राम सागर, खंदारी जलाशय में देखा जाता था। यहां भी बहुताायात में पक्षी पहुंचते थे। इसमें कई विदेशी मेहमान भी होते थे। इन पक्षियों को देखने के लिए पक्षी प्रेमी पहुंचते थे।


इन प्रदेशों व देशों से आते थे पक्षी
देश के विभिन्न प्रदेशों के साथ, दक्षिण भारत, कश्मीर, बंगाल के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान आदि।


महत्वपूर्ण तथ्य
110 प्रजातियां जबलपुर में
354 जबलपुर रीजन में
50 फीसदीप्रजातियां ही रह गईं


तालाब में नहीं बचा दाना
प क्षियों की प्रजातियां खत्म होने की एक बड़ी वजह वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के चलते पक्षियों का आशियाना छिन जाना है। वहीं दूसरी एक बड़ी वजह जिन तालाबों में पक्षियों को खाने के लिए कीड़े मकोड़े, मछलियां एवं पानी के किनारे तलहटी में कीड़े मिलते थे अब तालाबों में सिंगाड़े की खेती शुरू किया जाना है। खेती के दौरान सिंगाडों के लिए रसायन छिड़का जाना है। कुछ रसायन पानी और तालाब के किनारे पडऩे के कारण जलीय जंतु भी नष्ट हो जा रहे हैं। एेसे में पक्षियों के लिए न तो मछलियां हैं न ही जलीय जंतु। भोजन की संभावनाएं घटने से पक्षियों ने आना ही बंद कर दिया।


मिट्टी भी कर दी जहरीली
फसलों के अधिक उत्पादन को लेकर मिटटी में अंधाधुंध रसायानों के प्रयोग से मिट्टी भी जहरीली हो गई है। मिट्टी में जो बैक्टीरिया, माइक्रोआर्गनिज्म, केंचुआ और दूसरे कीट आदि होते थे वे पक्षियों के लिए दाने की तरह होते थे। पक्षियों को भरपूर भोजन मिल जाता था। लेकिन मिट्टी में कीटनाशकों और अन्य रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी जहरीली हो गई है। इसके चलते एक तो पक्षियों को भोजन नहीं मिलता दूसरा उनके जीवन के लिए भी संकट पैदा हो गया है। हालात यह है कि कीटनाशकों के छिड़काव के कारण अब पक्षी आने से कतराते हैं।


जलाशयों में हस्तक्षेप
प क्षियों को जलाशयों का शांत वातावरण सबसे प्रिय होता है। यदि जलाशय में किसी भी तरह की हलचल होती है तो पक्षी कुछ ही सेकेंड में भांप लेते हैं और जलाशय में नीचे आने की अपेक्षा दूसरी दिशा में उड़ जाते हैं। नर्मदा हो अथवा जलाशय यहां पर तालाबों में लोगों की लगने वाली भीड़, रेत की निकासी जैसे कारणों के चलते पक्षियों की आमद में खासी गिरावट आई है। जलस्रोतों में जो असामान्य हलचल बढ़ी है उसके चलते पक्षी माहौल को अनुकूल नहीं समझते हैं। वातावरण शांत न होने की वजह से वे नए ठिकाने की तलाश में कहीं और के लिए उड़ान भर लेते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पक्षियों के रहने के लिए अब न तो पेड़ बचे हैं न ही जलाशय। कई पक्षियों की प्रजातियां अब शहर से विलुप्त हो चुकी हैं। कांक्रीट के मकानों में भी उनके रहने के लिए इस तरह की व्यवस्थाएं नहीं हैं जिनमें वे घोंसला बना सकें। एक समय पनागर सहित कुछ अन्य जलाशयों का नजारा भरतपुर के बर्ड सेंचुरी जैसा होता था।
जगत फ्लोरा, पक्षी विशेषज्ञ

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