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शहर की राजनीति में दोनों दलों की बराबर की भागीदारी
सेठ गोविंददास, शरद यादव, बाबूराव परांजपे जैसे सशक्त नेताओं क ा प्रतिनिधित्व
तेईस साल रहा कांग्रेस का गढ़, अब तेईस साल से भाजपा का कब्जा
7 साल में लडखड़़ा गई थी कांग्रेस-1977 में शरद यादव ने जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से सेठ गोविंददास को बुरी तरह हराया। इसके बाद से ही गोविंददास व कांग्रेस का वर्चस्व जबलपुर में लडखड़़ाने लगा था। शरद यादव के जबलपुर छोडऩे के बाद कांग्रेस के मुंदर शर्मा 1980 के आम चुनाव में जीते। उनकी मृत्यु के बाद 1982 में हुए उपचुनाव में बाबूराव परांजपे ने कांग्रेस को हरा दिया।
इन दिग्गजों ने किया जबलपुर लोकसभा सीट का नेतृत्व
सेठ गोविंददास- महात्मा गांधी के निकट सहयोगी रहे सेठ गोविंददास पांच बार जबलपुर सांसद रहे। हिंदी आंदोलन में संघर्षरत रहने से वे देश भर में लोकप्रिय थे। महाकोशल में कांग्रेस के रणनीतिकार थे।
शरद यादव- जबलपुर सांसद बनने के बाद शरद यादव युवा लोक दल के महासचिव व राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। इसके बाद से वे लगातार लोकसभा या राज्यसभा सांसद बने हुए हैं। जनता दल संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष रहे।
बाबूराव परांजपे – चार बार सांसद रहे बाबूराव परांजपे का महाकोशल व प्रदेश भाजपा की राजनीति में खासा दखल था। वे जबलपुर नगर निगम महापौर भी रहे। परांजपे को तत्कालीन भाजपा का बड़ा रणनीतिकार माना जाता था।
अजय नारायण मुशरान – दो बार विधायक व एक बार सांसद रहे कर्नल अजय नारायण मुशरान ने नरसिंहपुर जिले में राजनीति के प्रारंभिक सोपान तय किए। वे 10 साल तक प्रदेश के वित्त मंत्री रहे। उन्हें कुशल प्रशासक माना जाता था।
श्रवणभाई पटेल – तीन बार विधायक व एक बार सांसद रहे श्रवणभाई पटेल का कांग्रेस में खासा रुतबा था। वे मप्र के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के काफी करीब थे।
जयश्री बनर्जी – तीन बार विधायक, एक बार सांसद व एक बार कै बिनेट मंत्री रहीं जयश्री बनर्जी ने बाबूराव परांजपे के देहांत के बाद भाजपा की नैया संभाली। उन्हें महिला ईकाई में खासा सम्मान मिला। वे मंत्री रहे जेपी नड्डा की रिश्तेदार हैं।
राकेश सिंह- चौथी बार चुने गए सांसद राकेश सिंह को भाजपा के दो पूर्व सांसदों द्वारा जमीजमाई जमीन मिली। 2004 में पहला चुनाव जीता। संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का जिम्मा मिला है।