भारत सरकार की गाइड लाइन का नहीं हो रहा पालन
भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख का शत प्रतिशत उपयोग दूसरे कार्यों में होना चाहिए, लेकिन यह कार्य पूरी तरह से नहीं हो पाता है।संत सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट के आसपास हवा में राख उडऩे के बाद ट्रापिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के जलवायु परिवर्तन ब्रांच के वैज्ञानिकों ने कंट्रोलिंग फ्यूजिटिव डस्ट एमिशन फार्म प्रोजेक्ट के अंतर्गत मॉडल तैयार किया। 2520 मेगावाट क्षमता के प्लांट में प्रतिदिन 8-10 हजार टन राख निकलती है। इसका इस्तेमाल सीमेंट उत्पादन, ईंट बनाने, गड्ढे भरने एवं खेतों में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है। जबकि, वातावरण में इसकी मात्रा ज्यादा होने पर जलस्रोत, फसल व आम आदमी की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख का शत प्रतिशत उपयोग दूसरे कार्यों में होना चाहिए, लेकिन यह कार्य पूरी तरह से नहीं हो पाता है।संत सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट के आसपास हवा में राख उडऩे के बाद ट्रापिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के जलवायु परिवर्तन ब्रांच के वैज्ञानिकों ने कंट्रोलिंग फ्यूजिटिव डस्ट एमिशन फार्म प्रोजेक्ट के अंतर्गत मॉडल तैयार किया। 2520 मेगावाट क्षमता के प्लांट में प्रतिदिन 8-10 हजार टन राख निकलती है। इसका इस्तेमाल सीमेंट उत्पादन, ईंट बनाने, गड्ढे भरने एवं खेतों में उर्वरक के रूप में भी किया जाता है। जबकि, वातावरण में इसकी मात्रा ज्यादा होने पर जलस्रोत, फसल व आम आदमी की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
रिसर्च के बाद सुझाए गए पौधे और वनस्पतियां
टीएफआरआइ के वैज्ञानिक डॉ. अविनाश जैन ने बताया, राख को नियंत्रित करने के लिए एस डाइक मॉडल बनाया गया। इसमें स्टोर राख के किनारे, 25-30 मीटर ऊंची दीवार नुमा ढांचा बनाया जाता है। नीचे मोटी और ऊपर पतली दीवार होती है, ऊपरी सतह पर छोटे, मध्यम और ज्यादा ऊंचाई वाले पौधे के साथ वनस्पतियां लगाई गई हैं। ऊपर सतह 5-7 मीटर चौड़ा होता है। यह राख को उडऩे से रोकती है और पेड़-पौधे सीओ-2 को अवशोषित करते हैं। पेड़ों में अगस्ती, जयंती, सफेद सिरिस, बबूल व करंज है, तो वनस्पतियों में बेशरम, मदार, गारूंदी, मुस्कानी, मोथा, मंूजा, दूब एवं रीड ग्रास लगाए गए हैं। वातावरण में सुधार हुआ है। पर्यावरण सुधार के लिए सुझाए गए सभी बिंदुओं पर पावर प्लांट की ओर से कार्य किए जा रहे हैं। खंडवा के एस डाइक पर हरियाली बढऩे लगी है।
टीएफआरआइ के वैज्ञानिक डॉ. अविनाश जैन ने बताया, राख को नियंत्रित करने के लिए एस डाइक मॉडल बनाया गया। इसमें स्टोर राख के किनारे, 25-30 मीटर ऊंची दीवार नुमा ढांचा बनाया जाता है। नीचे मोटी और ऊपर पतली दीवार होती है, ऊपरी सतह पर छोटे, मध्यम और ज्यादा ऊंचाई वाले पौधे के साथ वनस्पतियां लगाई गई हैं। ऊपर सतह 5-7 मीटर चौड़ा होता है। यह राख को उडऩे से रोकती है और पेड़-पौधे सीओ-2 को अवशोषित करते हैं। पेड़ों में अगस्ती, जयंती, सफेद सिरिस, बबूल व करंज है, तो वनस्पतियों में बेशरम, मदार, गारूंदी, मुस्कानी, मोथा, मंूजा, दूब एवं रीड ग्रास लगाए गए हैं। वातावरण में सुधार हुआ है। पर्यावरण सुधार के लिए सुझाए गए सभी बिंदुओं पर पावर प्लांट की ओर से कार्य किए जा रहे हैं। खंडवा के एस डाइक पर हरियाली बढऩे लगी है।