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मंडी में किसानों के हक पर ‘डाका’ डाल रहे दलाल

locationजबलपुरPublished: Apr 22, 2019 07:35:19 pm

Submitted by:

manoj Verma

कृषि उपज मंडी का मामला : बिचौलिए ही तय करते हैं रेट

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कृषि उपज मंडी का मामला : बिचौलिए ही तय करते हैं रेट

जबलपुर। कृषि उपज मंडी में किसानों के हक पर दलाल (बिचौलिए) डाका डाल रहे हैं। मंडी में किसानों की कोई पहचान नहीं है, जिससे अनाज की खरीद-फरोख्त दलाल कर रहे हैं। दलालों के हावी होने से किसानों को फायदा नहीं पहुंच रहा है। यह हम नहीं कह रहे हैं, मंडी के जिम्मेदार इस बात की दलील दे रहे हैं कि प्रदेश की 295 मंडियों में ये ही हो रहा है, जो माल लेकर आ रहा है वो ही माल बेच रहा है। मंडी किसान होने की पहचान नहीं कर पाती है। कृषि उपज मंडी की व्यवस्थाओं पर भारी पड़ रहे दलालों की हकीकत बयां करती एक्सपोज की रिपोर्ट…।
कृषि उपज मंडी में शासन की सारी योजनाएं ढेर हो गई है। मंडी में आज भी किसान दलालों के हाथों कठपुतली बना हुआ है। किसानों की मेहनत के बाद पैदा किए गए अनाज का दाम तय कर रहा है, जिससे किसानों को उसका मूल हक नहीं मिल पा रहा है। मंडी की छानबीन की गई तो यह सामने आया कि जिले में दलाल किसानों से फसल खरीदकर उसे मंडी में ला रहा है और मंडी में वह समर्थन मूल्य पर अनाज बेच रहा है, जिससे सरकारी रेट पर वह फायदा उठा रहा है, जो किसान को मिलना था।
दलालों का माल
कृषि उपज मंडी में ट्रकों से अनाज भरा पड़ा है। सीजन की पैदावार गेहूं के बड़े-बड़े ढेर लगे हैं। एक ढेर में औसतन करीब पांच-छह ट्रक गेहूं है। यह ढेर एक किसान का नहीं है बल्कि एक दलाल का है। मौके पर बारदाने में अनाज भर रहे कर्मचारियों से बातचीत की गई तो उन्होंने ये माल कथित दलाल का होना बताया। मंडी में दूसरे ढेर पर बैठे व्यक्ति से बात की गई तो उसका कहना था कि…
क्यों ये माल आपका है?
हां, है।
आप व्यापारी है क्या?
नहीं, हम किसान हैं।
ये कितना माल होगा?
करीब 250 क्ंिवटल।
यहां बिचौलिए को माल बेचा जाता है?
हां, बेचा तो जाता है लेकिन हम अपना माल खुद बेचने आए हैं।
छोटे किसान क्या करते हैं?
वे बिचौलिए के पास जाते हैं। बिचौलिए माल लेकर उन्हें नकद दे देते हैं।
लेकिन समर्थन मूल्य तो नहीं मिलता होगा?
हां, लेकिन उन्हें नकद मिल जाता है। आखिर बिचौलिया भी तो कमाएगा।
चने की नीलामी
मंडी के शेड में किसानों द्वारा लाए गए चने की नीलामी की जा रही थी। इसमें मंडी कर्मचारी प्रत्येक ढेर पर पहुंचकर किसानों के सामने व्यापारियों से नीलामी करवा रहा था। उसके साथ ही रसीद काटी जा रही थी। इसमें एक रसीद व्यापारी और दूसरी रसीद किसान को दी जा रही थी। जानकारों का कहना है कि कम अनाज का व्यापारियों के बीच नीलामी दिखाई जा रही थी। यहां किसान का माल बिकते ही उसे रसीद के हवाले से शाम तक भुगतान हो रहा था।
पचास किलो से
ज्यादा पर चेक
किसानों का कहना था कि पचास किलो से अधिक माल होने पर उन्हे चेक से भुगतान मिलता है। इसलिए वे माल अलग-अलग टुकड़ों में लगा रहे थे ताकि उन्हें शाम तक नकद भुगतान हो सके। किसानों की यह भी दलील थी कि कई बार भुगतान रुक जाता है, जो एक-दो दिन बाद मिल पाता है। इसके लिए जुगाड़ करने दलालों से संपर्क करना पड़ता है। कई ढेर लगाने में उन्हें भाव नहीं मिल पाता। यहां किसान से बातचीत की तो यह सामने आया…।
तुम्हारा चना बिक गया?
हां, बिक तो गया लेकिन बीस रुपए कम मिले।
लेकिन ये कम क्यों हो गया?
हमारे एक ढेर का 3900 रुपए मिला और दूसरे का 3700 मिला।
आखिर ये कम कैसे हो गया?
ये तो व्यापारियों ने दाम लगाए हैं, इसमें हम क्या कर सकते हैं?
लेकिन बिचौलिए भी तो ये माल ले लेते हैं?
हां, ले लेते हैं, लेकिन माल बिकने पर पैसे का इंतजार करना होता है।
कई तो तुरंत पैसा देते हैं?
वो कम देते हैं। जरूरी होता है तो हम भी माल उन्हें ही दे देते हैं। नहीं तो फिर खुद माल बेचते हैं।
ये है हकीकत
कृषि उपज मंडी में मौजूद किसानों से बातचीत में बताया कि गांव से मंडी तक माल लाने में खर्च और समय दोनों ही जाते हैं। इससे अच्छा थोड़ा घाटा लेकर नकद माल बेच देते हैं। यह माल हमारे घर से ही उठाया जाता है। जानकार कहते हैं कि समर्थन मूल्य से कम पर दलाल माल खरीदते हैं और यह माल मंडी में लाकर उसे बेचते हैं। इससे उन्हें खासा फायदा हो जाता है। दस किसानों का माल बेचने में एक मुश्त रकम उन्हें मिल जाती है। इसके अलावा सरकार द्वारा योजनानुसार दी जाने वाली राशि का भी लाभ हो जाता है।
सीधी बात
आरके सैयाम, सचिव, कृषि उपज मंडी
मंडी में अनाज का ढेर लगा है, क्या ये एक ही किसान का है?
हां, हो सकता है।
हो सकता है यानि आपको नहीं मालूम कि माल किस किसान का है?
मंडी में जो अनाज आ रहा है हम उसे खरीदते हैं और उसकी रसीद दी जाती है। कुछ में हम किसानों का माल व्यापारियों को बिकवा देते हैं।
लेकिन ये अनाज किसान का है या नहीं, क्या इसे देखा नहीं जाता है?
मंडी में अनाज किस व्यापारी का आ रहा है, इसे हम आइडेंटीफाइ नहीं कर पाते हैं।
लेकिन मंडी तो किसानों के लिए है, यह फायदा बिचौलिए उठा रहे हैं?
हां, बिचौलिए हो सकते हैं। प्रदेश की मंडी में यही चल रहा है। हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते हैं।
आखिर किसान की पहचान क्यों नहीं हो पाती है?
पहचान होने पर वह बही पेश कर देता है और दावे के साथ यह बता सकता है कि यह उपज उसकी है।
इससे तो किसानों को नुकसान हो रहा है?
नुकसान कैसा। ऑफ द रिकॉर्ड बात करें तो किसान पहले ही नकद ले लेता है और माल उसके घर से ही उठ जाता है।
लेकिन मंडी का रेट तो उसे नहीं मिलता?
थोड़ा कम मुनाफा मिलता है लेकिन उसे माल लाने ले जाने की झंझट नहीं होती है और न ही पेमेंट के लिए भटकना पड़ता है। किसान के माल बिकने पर उसे सरकार की योजना का लाभ तो मिलता है।
लेकिन इसमें तो किसान को सीधे फायदा नहीं होता?
यह जरूर है लेकिन बिचौलिए भी तो पैसा लगाते हैं, वे भी कुछ फायदा तो लेंगे ही।
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