scriptकेंद्रीय जेल में इस हालत में मिले बंदी, दंग रह गए मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष | Chairman of Human Rights Commission inspected central jail | Patrika News

केंद्रीय जेल में इस हालत में मिले बंदी, दंग रह गए मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष

locationजबलपुरPublished: Apr 15, 2019 11:23:30 pm

Submitted by:

santosh singh

दंग रह गए मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष, बैरक से लेकर पाकशाला और अस्पताल में बंदियों से चर्चा कर सुनी उनकी समस्याएं

जेल चिकित्सालय

जेल चिकित्सालय

जबलपुर. नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय जेल का सोमवार को मप्र मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नरेंद्र कुमार जैन और सदस्य मनोहर ममतानी ने निरीक्षण किया तो दंग रह गए। वे पाकशाला से लेकर अस्पताल, महिला बंदियों, खुली जेल और औद्योगिक प्रशिक्षण परिसर में गए। वहां बंदियों से बात तो उनकी समस्याओं से रूबरू हो पाए। महिलाओं के साथ जेल में रहने वाले बच्चों से बात कर उनके पठन-पाठन की जानकारी ली। कुछ बंदियों को विधिक सहायता तक नहीं मिली थी, जिस पर उन्होंने तुरंत विधि अधिकारी अशोक सिंह को निर्देश दिए।
भोजन की क्वालिटी चेक की
सुबह 10.30 बजे जस्टिस जैन केंद्रीय जेल पहुंचे। उन्होंने सबसे पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की शायिका पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद बंदियों की पाकशाला पहुंचे। वहां की साफ-सफाई के साथ भोजन की क्वालिटी को लेकर बंदियों से बात की। इसके बाद पश्चिम खंड में विचाराधीन बंदियों व सजा प्राप्त बंदियों और मृत्युदंड की सजा से दंडित बंदियों की परेड में बात की।
बच्चों को कैसे पढ़ाती हो मैडमजी
महिला वार्ड में संचालित स्कूल की शिक्षक से भी बात कर बच्चें की पढ़ाई को लेकर चर्चा की। इसके बाद जेल चिकित्सालय और ओपन जेल के साथ ही औद्योगिक प्रशिक्षण परिसर पावरलूम में निर्मित वस्त्र व साड़ी बुनाई का भी निरीक्षण किया। इस मौके पर जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकार, उप जेल अधखक रविशंकर सिंह, रामकृष्ण चौरे, राजेंद्र मिश्रा, सहायक जेल अधीक्षक श्रीकांत त्रिपाठी, रूपाली मिश्रा सहित अन्य लोग मौजूद थे।

भोजन की क्वालिटी चेक की
IMAGE CREDIT: patrika

ऐतिहासिक है जबलपुर सेंट्रल जेल-
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाषचंद्र बोस ने यहां 22 दिसम्बर 1931 से 16 जुलाई 1932 तक और फिर 18 फरवरी 1933 से 22 फरवरी 1933 तक निरूद्ध रहे। उनसे जुड़ी कई यादगार सामग्रियों का जेल में संग्रह कर म्यूजियम बनाया गया है। वहीं अन्य सेनानी की बात करें तो सुभद्रा कुमारी चौहान भी यहां 11 अगस्त 1942 से एक मई 1944 तक निरूद्ध रहीं। इनके नाम पर ही सेंट्रल जेल में 10 बंदियों के लिए खुली जेल का निर्माण किया गया है। यहां बंदी परिवार सहित रहकर बाहर काम-धंधा करने जाते हैं।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो