script

दो साल बाद मड़ई-मेले की फिर वही धूम, उमड़े लोग

locationजबलपुरPublished: Nov 07, 2021 06:52:47 pm

Submitted by:

Sanjay Umrey

गुलौआ में चंडी पूजा के साथ दो दिवसीय पारम्परिक उत्सव शुरू

गुलौआ में चंडी पूजा के साथ दो दिवसीय पारम्परिक उत्सव शुरू

गुलौआ में चंडी पूजा के साथ दो दिवसीय पारम्परिक उत्सव शुरू

जबलपुर। गुलौआ चौक में शनिवार को दो दिवसीय मड़ई और चंडी मेले का शुभारम्भ हुआ। चंडी माता की परिक्रमा और मनोकामना पूर्ति के बाद लोगों ने खरीदारी की। परम्परागत वेश भूषा में कलाकारों ने अहीर नृत्य कर दिवारी गायन किया। इस अवसर पर भारतीय संस्कृति एवं ग्रामीण परिवेश की अद्भुत झलक दिखी।
रानी दुर्गावती मित्रमंडल के तत्वावधान में आयोजित मेले में गुलौआ से संकट मोचन हुनमान मंदिर एवं रेलवे फाटक के पास तक दुकानें लगी हैं। बीटी तिराहा और गंगा सागर की ओर जाने वाली सडक़ पर लगाई गई दुकानों पर देर रात तक ग्राहकों को तांता लगा रहा। रोशनी से नहाए गुलौआ चौक के आसपास के क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के पुराने गीत-संगीत की धुन में लोगों ने मेले का आनंद लिया।
मित्रमंडल के सदस्य व पार्षद संजय राठौड़ ने बताया, संस्कारधानी में गुलौआ मंदिर से ही मड़ई मेले की शुरुआत होती है। उसके बाद त्रिपुरी चौक और देवताल में मड़ई मेला लगाया जाएगा। उन्होंने बताया कि शहर एवं ग्रामीण क्षेत्र के दुकानदारों को बिना शुल्क के सुविधाएं दी जाती हैं। दुकानदारों की दूसरी पीढ़ी भी यहां आई है। मेले में नवयुवकों की टीम ने लोगों की सुविधाओं पर ध्यान दिया।
झूलों का आनंद
मड़ई मेला में बच्चों ने झूलों का आनंद लिया। विभिन्न क्षेत्रों से आए कलाकारों ने कला के हुनर की शानदार प्रस्तुति दी। मिट्टी की कलाकृतियां सबसे आकर्षक हैं। कपड़े, बर्तन, सौंदर्य प्रसाद, गृहस्थी आदि के सामानों पर लोगों ने खरीदारी की। गुड़ की मिठाई जमकर बिकी। चाट फुल्की और समोसे के स्टालों पर लोगों की भीड़ लगी थी। रात 10 बजे के बाद मेले में भीड़ बढऩे लगी और रात 12 बजे तक माता चंडी की परिक्रमा होती रही।
हजार साल पुराना इतिहास, बनती थी राज्य की गुप्त रणनीति
शहर का सबसे पुराना व पहला मड़ई मेला गोंडवाना राज्य के गढ़ा गुलौआ क्षेत्र में शनिवार से लगा। जानकारों के अनुसार मड़ई मेलों का आयोजन गोंडवाना काल से हो रहा है। इतिहासकार राजकुमार गुप्ता ने बताया कि 11वीं-12वीं शताब्दी में मड़ई मेलों की शुरुआत का उल्लेख मिलता है। इसका उद्देश्य स्थानीय व्यापारियों, छोटे दुकानदारों, फेरी वालों को रोजगार देना था। इसमेें सामाजिक मेलजोल को बढ़ाना भी शामिल था। इन मेलों में दुश्मन राज्यों से निपटने, राज्य में मौजूद अन्य राज्यों के गुप्तचरों को पकडऩे के लिए रणनीति भी बनाई जाती थी। पहले मुगलों के खिलाफ रणनीति बनाई गई। फिर अंग्रेजों से आजादी के लिए भी इन मेलों का उपयोग किया गया। यहां गीत-संगीत के माध्यम से लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया जाता था, ताकि आमजन भी अपने देश के लिए आजादी की जंग में शामिल हों।
राजकुमार गुप्ता ने बताया कि मड़ई मेलों की सूचना महीनों पहले आसपास के गांवों, जिलों और राज्यों में दे दी जाती थी। यह एक तरह से संस्कृति संगम स्थल हुआ करता था। इसमें व्यापारी, आमजन और साहूकार भी शामिल होते थे। वे अपने अपने क्षेत्रों के उत्पाद, हस्तशिल्प, संस्कृति से जुड़े गीत-संगीत आदि का प्रदर्शन करते थे। वर्तमान में जबलपुर जिले में आधा सैकड़ा से अधिक मड़ई मेलों का आयोजन किया जाता है। मझौली का मड़ई मेला सबसे प्रसिद्ध माना जाता है। यहां अन्य जिलों से भी लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। मेले के चलते यहां का बाजार बहुत ज्यादा चलता है। ये रिश्ते जोडऩे का माध्यम भी बनते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो