मेघा से पहले रादुविवि के ही पूर्व कुलपति डॉ. एसपी कोष्टा भी इसरो में वैज्ञानिक रह चुके हैं। जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज और गवर्नमेंट साइंस कॉलेज के दो छात्र भी स्पेस प्रोजेक्ट में अहम जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। ऐसे में मून का यह मिशन न केवल शहर में पढकऱ चांद को जानने की तमन्ना रखने वाली मेघा की सफलता की उम्मीद कर रहा है। बल्कि इसरो तक पहुंचने वाले शहर से जुड़े वैज्ञानिक फिजिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ ही अंतरिक्ष विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले विद्यार्थियों और युवा शोधार्थियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए हैं। उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान की नई खोजों की ओर अध्ययन के लिए आकर्षित कर रहे हैं। इसके अलावा भी विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में शहर की हस्तियां चमक रही है।
वर्ष 2004 में रादुविवि से एमएससी
चंद्रयान-2 मिशन से जुड़ी मेघा ने रादुविवि से स्नातक और स्नातकोत्तर किया है। वर्ष 2004 में रादुविवि के फिजिक्स एंड इलेक्ट्रॉनिक्स डिपार्टमेंट से एमएससी की डिग्री हासिल की है। उसके बाद जर्मनी से पीएचडी की है। जानकार बताते हैं कि मेघा का पीएचडी का विषय चंद्रयान-1 पर बेस्ड था। इसके आधार और अनुभव का उपयोग चंद्रयान-2 में किया। वे वर्ष 2006 से स्पेस एप्लीकेशन रिसर्च प्रोग्राम से जुड़ी हैं। वे अहमदाबाद फिजिकल रिसर्च लेबोरेटी में रिसर्च कर रही है। चंद्रयान-2 चांद की सतह पर उतरने के बाद जो डेटा भेजेगा उसका मेघा विश्लेषण करेंगी। उसके आधार पर चांद में जलवायु, जल लोह तत्व और मिनरल्स की जानकारी संकलित करेंगी। डेटा विश्लेषण के जरिए पता करने की कोशिश करेंगी कि चांद पर लावा फिर चीजों ने कैसे और किस तरह आकार लिया होगा।
रशियन प्रोजेक्ट से जुड़े थे प्रो. कोष्टा
मेघा से पहले रादुविवि के कुलपति रहे और शहर के प्रो. एसपी कोष्टा भी इसरो में वैज्ञानिक रह चुके हैं। वे सेटेलाइट से संबंधित तत्कालीन रशियन प्रोजेक्ट का हिस्सा थे। प्रो. कोष्टा मानते हैं कि इसरो तक पहुंचना प्रतिष्ठा का विषय है। मेघा युवाओं के लिए मिसाल है। शहर में पढ़ाई का स्तर अच्छा है और उसकी लगन है कि इस मुकाम तक पहुंची हैं। चंद्रयान-2 को लेकर प्रो. कोष्टा कहते है कि यह मिशन बेहद जटिल और जोखिम भरे होते हैं। एक बार प्रक्षेपण के बाद चूक में सुधार की गुंजाइश कम रहती है। यह टीम की बारीक निगरानी और लगन का नतीजा है कि प्रक्षेपण से पहले त्रुटि को पकड़ लिया गया। इसरो के सभी वैज्ञानिक क्षमतावान हैं। यह अभियान सफल होने की उम्मीद करते हैं।
डीआरडीओ के प्रोजेक्ट में कई युवा
जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज और गर्वनमेंट साइंस कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद कई छात्र-छात्राएं डीआरडीओ में सेवाएं दे रहे हैं। इसमें ज्यादातर डीआरडीओ में वैज्ञानिक हैे। साइंस कॉलेज में डीआरडीओ के कुछ प्रोजेक्ट्स भी हुए हैे। इसरो जहां स्पेस रिसर्च पर काम करता है। वहीं डीआरडीओ में डिफेंस सिस्टम संबंधित जरूरतों को लेकर शोध कार्य होते हैं।
साहसिक प्रयास, सफल होगा
अंतरिक्ष में बड़ी और देश के लिए बढिय़ा घटना है। इसरो का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में जाने का साहसिक प्रयास है। मिशन सफल होने पर इसरो के तरकश में एक और तीर आ जाएगा। आगे गगनयान में जीएसएलवी का उपयोग संभव होगा। प्रक्षेपण से लेकर उसके संचालन, निगरानी और सुरक्षित तरीके से ऑर्बिटर की लैंडिंग एक कठिन प्रक्रिया है। यह मिशन कठिन इसलिए भी था क्योंकि दूसरे देश से इंजन नहीं मिला। वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत की है। निश्चित रूप से आकाश में नया चमत्कार होगा। सफलता पर अंतरिक्ष एवं विज्ञान के क्षेत्र में नई उपलब्धियां हासिल करने के लिए युवा वैज्ञानिक प्रेरित होंगे।
डॉ. संजय अवस्थी, साइंस कम्युनिकेटर
शोध के लिए रुचि बढ़ेगी
यह दुनिया में अनोखा कार्य होगा। इसकी टेक्नोलॉजी के कारण स्पेस प्रोग्राम में देश आगे होगा। मिशन में चंद्रमा में किस तरह की जलवायु, पानी के साथ ही अन्य संसाधन है, इसका जानकारी पर केंद्रित किया गया है। यह प्राप्त होने पर बड़ी उपलब्धि होगी। उसकी उत्पत्ति के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इस मिशन से रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय की छात्रा डॉ. मेघा भट्ट जुड़ी हुई है। उन्होंने वर्ष 2004 में विवि से इलेक्ट्रॉनिक्स में एमएससी किया है। उनके जुड़ाव और मिशन की सफलता से अंचल के अन्य युवा वैज्ञानिक प्रेरित होंगे। नए विषयों पर शोध के लिए रूचि बढ़ेगी। छात्रा का मिशन में होना विवि के लिए गौरव की बात है।
– प्रो. राकेश बाजपेई, फिजिक्स डिपोर्टमेंट, रादुविवि
शहर से पढ़कर वैज्ञानिक बनें ये लोग
– अभय यादव, साइंस कॉलेज से पढ़ाई के बाद जर्मनी में स्पेस फिजिक्स प्रोजेक्ट में रिसर्च कर रहे हैं।
– साकेत कौरव, साइंस कॉलेज से पढ़ाई के बाद स्पेस रिसर्च से जुड़े कई अहम विषयों के शोध कार्य में शामिल।
– निशिकांत शर्मा, गर्वनमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज बीई किया। इसरो के एक सहायक प्रोजेक्ट में वैज्ञानिक हैं।
– सचिन जैन, जीइसी से एमटेक किया। डीआरडीओ में साइंटिस्ट हैं।
– प्रमेंद्र वर्मा, जीइसी से एमटेक हैं डीआरडीओ में साइंटिस्ट हैं।
– नैवेद्य मिश्रा, जीइसी से बीइ हैं। डीआरडीओ में साइंटिस्ट हैं।
– दिनेश त्रिवेदी, शहर के निवासी हैं। डीआरडीओ में साइंटिस्ट हैं।