नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ छठपूजा पर्व, नर्मदा तट पर जुटे व्रतधारी
छठ पूजा पर्व के पहले दिन रखा खरना का व्रत
नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ छठपूजा पर्व, नर्मदा तट पर जुटे व्रतधारी
जबलपुर।
कार्तिक माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी से आरम्भ होकर चार दिन तक चलने वाला छठ महापर्व सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। गत वर्ष की तुलना में कोरोना का असर कम होने के चलते पर्व की गहमागहमी जमकर नजर आई। नर्मदा तटों में श्रद्धालुओं की भीड़ थी। छठ पर्व इस साल 8 से 11 नवंबर तक मनाया जा रहा है। मंगलवार को खरना का व्रत रखा गया। पर्व का समापन 11 नवंबर को ऊगते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ होगा। छठ पर्व के पहले दिन सोमवार को गंगा पूजन और सूर्य को अघ्र्य देने के बाद नहाय-खाय हुआ। मान्यता अनुसार महिलाओं ने नदियों और तालाबों के घाटों पर छठी माता की आराधना के लिए नियत स्थान की गोबर से लिपाई की और पूजा के लिए बेदी बनाई।
रंगोली से घाट सजाए गए। महिलाओं ने घरों में खासतौर पर कद्दू की सब्जी, चने की दाल बनाई। इसके साथ चावल और गुड़ ग्रहण किया। छठ मैया की उपासना के लिए ग्वारीघाट, तिलवारा घाट और विभिन्न तालाबों सहित 18 घाटों को तैयार करने का सिलसिला दिन भर चला। मंगलवार को लोहंडा-खरना होगा।
बाजारों में बढ़ी रौनक
पर्व को लेकर बाजार में रौनक बढ़ गई है। परम्परागत बाजारों में पूजन सामग्री लेने के लिए भीड़ थी। सुबह से कोशी, बांस का सूप, फल, पानी वाला नारियल, गन्ना, कच्ची हल्दी, मूली, अदरक की बिक्री हुई। व्रत रखने वाली महिलाएं पूजा सामग्री के लिए नए बर्तन और कपड़े खरीद रही हैं। व्रती नई साड़ी पहनकर ही अस्तांचल व उदय होते सूर्य को अघ्र्य देती हैं। छठ पूजा नर्मदा तट और तालाबों के घाटों पर शहर में करीब 18 जगह होती है।
ये होता है चार दिन
कार्तिक माह की शुक्लपक्ष चतुर्थी को पर्व के पहले दिन सुबह व्रत रखने के बाद भक्त अगले दिन शाम को जिसे खरना कहा जाता है, तक भोजन करते हैं। इस दिन वे खीर, चपातियां और फल खाते हैं। दूसरे दिन को लोहंड भी कहा जाता है। पंचमी को महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को भोजन करती हैं। शाम को गुड़ से बनी खीर खाई जाती है। इस विधि को खरना कहा जाता है। तीसरे दिन को पहला या सांध्य अघ्र्य कहा जाता है। व्रत रखने वाले लोग इस दिन कुछ भी खाने से पूरी तरह परहेज करते हैं। डूबते सूरज की पूजा की जाती है और शाम को अघ्र्य दिया जाता है।
अंतिम दिन व्रतधारी सुबह सूर्योदय के समय सूर्य को अघ्र्य देते हुए पूजा करते हैं और अपना व्रत खोलते हैं। इसके बाद भक्त खीर, मिठाई, ठेकुआ और फल सहित छठ प्रसाद का सेवन करते हैं। चावल, गेहूं, ताजे फल, नारियल, मेवे, गुड़ और घी में छठ पूजा के प्रसाद के साथ-साथ पारम्परिक छठ भोजन बनाया जाता है।
तैयारियां दुरुस्त
छठ पर्व के मद्देनजर नगर निगम ने ग्वारीघाट, तिलवाराघाट, अधारताल, हनुमानताल, रांझी सहित अन्य सभी घाटों पर प्रकाश से लेकर पेयजल की व्यवस्था की गई है। नगर निगम आयुक्त के निर्देश पर घाटों में चेंजिंग रूम की व्यवस्था की गई है।
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