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Chinese items-यहां के लोग हो गए जागरूक, चाइनीज आइटम्स को कह रहे हैं टाटा-बाय-बाय

locationजबलपुरPublished: Aug 24, 2019 05:55:23 pm

Submitted by:

shyam bihari

Chinese items-यहां के लोग हो गए जागरूक, चाइनीज आइटम्स को कह रहे हैं टाटा-बाय-बाय
Chinese items dislikes in this city
 
गुणवत्ता को लेकर समझौता करने को तैयार नहीं हैं जबलपुर वाले

Chinese Manjha

चाइनीज मांझे की धार से इन बेजुबानों को मिल रहा जख्म…,चाइनीज मांझे की धार से इन बेजुबानों को मिल रहा जख्म…,

जबलपुर। खिलौने हों या साज-सज्जा के सामान। बर्तन हों या घरेलू अन्य वस्तुएं। इन सब जगह पूरे देश में चाइनीज आइटम्स का चलन आम हो गया है। लेकिन, जबलपुर शहर में के लोग इस समय सस्ते की अपेक्षा गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसका नतीजा है कि शहर से चाइनीज माल की बिक्री तेजी से घटी है। शहर में इनकी बिक्री 30 फीसदी रह गई है। यहां के लोग चाइनीज माल को टाटा-बॉय-बॉय कह रहे हैं।
सस्ता और आकर्षक होने के कारण चायनीज वस्तुओं का उपयोग शहर में तेजी के बढ़ा था। हर घर में कोई न कोई चाइनीज वस्तु मिलती थी। विशेषकर त्योहारों के समय इनकी मांग में कई गुना इजाफा हो गया था। चाइनीज झालर, सजावटी वस्तुएं, बच्चों के खिलौने, इलेक्ट्रिकल्स आइटम, प्लास्टिक के फूल के साथ-साथ होली में पिचकारी, दीपावली में पटाखे और लाइटिंग का आइटम, रक्षाबंधन में राखी और जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के सिंहासन और मुकुट भी चाइनीज थे। खिलौने, इलेक्टिकल्स, प्लास्टिक फ्लावर और गिफ्ट आइटम की बात की जाए तो इनका मासिक कारोबार 50 से 70 करोड़ के बीच होता है। पहले लगभग 80 फीसदी चीजें चाइनीज थीं, लेकिन अब घटकर करीब 30 फीसदी हो गया है।
सस्ता और टिकाऊ
10 से 15 करोड़ रुपए मासिक के इस कारोबर में चाइनीज खपत 80 से घटकर करीब 50 फीसदी रह गई है। जानकार बताते हैं कि दिल्ली और मुम्बई में नई इकाइयों लगने से शहर में भी यहीं से माल आ रहा है। यह सस्ता एवं टिकाऊ भी है।
देसी की रुझान
स्वदेशी का नारा बुलंद करते हुए लोगों ने झालर और सजावटी लाइट में अब देसी माल खरीदना शुरू कर दिया है। शहर में ही झालर तैयार होने लगी हैं। अब 80 फीसदी देसी तो 20 फीसदी चीनी झालर हैं। सीजन में इनका कारोबार 2 से 5 करोड़ के बीच होता है।
तेजी से घटा
इस श्रेणी में कई प्रकार की चीजें आती हैं। जैसे टॉर्च, प्रेस, इमरजेंसी लाइट, एलईडी बल्व, पंखे आदि। शहर में इनका मासिक कारोबार 30-35 करोड़ के बीच है। इसमें भी 60 से 70 फीसदी दखल चायनीज कम्पनियों था। अब यह घटकर 25 से 30 फीसदी रह गया है। हाल के तीन वर्षों में चीनी कम्पनियों ने त्योहारी वस्तुओं में भी खूब घुसपैठ बना ली थी। अब इनमें भारी कमी आई है।
अपने आप आई समझ
शहर के कारोबारियों को कहना है कि लाइटिंग में पहले 90 फीसदी माल चाइनीज होता था। अब यह 20 से 30 फीसदी रह गया है। लोग खुद ही पसंद नहीं करते, इसलिए हम भी इसे नहीं मंगाते। गिफ्ट आइटम को छोड़ दिया जाए तो चाइनीज माल की खपत अब पहले के मुकाबले बेहद कम रह गई है। चायनीज चीजों की सबसे बड़ी कमी कम टिकाऊपन है। पहले में चाइनीज झालर लेता था, लेकिन जब पता चला कि इसकी वजह से अपने देश के कुटीर उद्योग खत्म हो रहे हैं, तब से इनकी तरफ देखना भी पसंद नहीं करता। इस बार राखी की दुकानों में जाकर दुकानदार से पूछा कि इसमें चायनीज मटेरियल तो नहीं लगा। कुछ दुकानदारों ने थोड़ा माल लगे होने की बात कही। इसलिए मैंने रेशमी धागा ही खरीदा।
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