scripthospital, स्कूल-कॉलेज नहीं , इस शहर में बस बन रहे मकान | City development could not take growth in jabalpur | Patrika News

hospital, स्कूल-कॉलेज नहीं , इस शहर में बस बन रहे मकान

locationजबलपुरPublished: Oct 13, 2017 11:38:01 am

Submitted by:

deepak deewan

आवासीय योजनाओं में सिमटी स्कीम , शहर विस्तार के बाद भी जेडीए ने नहीं बनाई नई योजना, ट्रांसपोर्ट, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज व टिम्बर पार्क के लिए नहीं हो सक

City development could not take growth in jabalpur

City development could not take growth in jabalpur

जबलपुर. क्या सिटी डेवलपमेंट का मतलब केवल मकान बनाना ही है? शहरवासियों के लिए ट्रांसपोर्ट अस्पताल, स्कूल-कॉलेज या बच्चों के लिए पार्क जैसी सुविधाएं जरूरी नहीं हैं? जेडीए के काम से तो यही लगता है कि शहर के लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना उसका मकसद ही नहीं है। किसी भी शहर के व्यवस्थित विकास में वहां का स्थानीय प्राधिकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन, संस्कारधानी में जेडीए की योजनाओं ने शहर के विकास को पंख ही नहीं लगने दिया। जेडीए की स्कीम आवासीय योजनाओं तक सिमटकर रह गई हैं। एक आईएसबीटी को छोड़ दें तो शहर विकास का आईना कहे जाने वाले ट्रांसपोर्ट, स्कूल कॉलेज, अस्पताल, टिम्बर व थोक कारोबारियों के लिए जेडीए एक भी व्यवस्थित स्थल का विकास नहीं करा सका। शहर में अब भी ट्रांसपोर्ट व्यवसायी और थोक कारोबार ट्रैफिक के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। पुरानी योजनाएं को भी जेडीए ने आवासीय में तब्दील कर दिया है।

वर्ष २०१४ में शहर विस्तार के बावजूद जेडीए ने कोई एेसी स्कीम नहीं लॉन्च की, जिसमें शहर के ट्रांसपोटर्स को व्यवस्थित किया जा सके। ट्रांसपोर्ट के लिए प्रस्तावित स्कीम नंबर ६३ को भी आवासीय में तब्दील करने की कवायद हो रही है। आगा चौक से दमोहनाका और ट्रांसपोर्ट नगर तक ट्रकों की आवाजाही से शहर की ट्रैफिक व्यवस्था पंगु हो गई है। टिम्बर पार्क के लिए प्रस्तावित स्कीम ३१ को आवासीय में तब्दील करने के बाद जेडीए कोई दूसरा स्थल चिह्नित नहीं कर सका है। जबकि शहर में टिम्बर उद्योग सबसे बड़ा रोजगार का साधन है। यहां से कई राज्यों में फर्नीचर की सप्लाई होती है। कई टिम्बर कारोबार घनी आबादी में चल रहे हैं। यहां अग्नि दुर्घटनाओं के कई बड़े हादसे भी हो चुके हैं।

महाकोशल क्षेत्र में स्वास्थ्य का केन्द्र
प्रदेश के पहले मेडिकल विश्वविद्यालय सहित मेडिकल कॉलेज, कई निजी व शासकीय अस्पतालों में महाकोशल क्षेत्र से मरीज आाते हैं। कई अस्पताल घनी आबादी में हैं। जेडीए एेसी कोई स्कीम नहीं बना पाया, जहां सभी स्वास्थ्य सुविधाएं जांच केन्द्र, थोक दवा मार्केट, अस्पताल आदि उपलब्ध हों।

घनी आबादी में थोक व्यवसाय
शहर में ७०० से अधिक कपड़ा, बर्तन, राशन, तेल, घी, इलेक्ट्रिक, मोबाइल, टायर आदि के कारोबारी हैं। इसमें अधिकतर फुहारा, लार्डगंज, गंजीपुरा आदि क्षेत्रों में संचालित हो रहे हैं।


ऐसे हैं हालात
– जेडीए की आवासीय योजनाएं भी अटकी
हुई हैं
– शहर को एनएच-७, एनएच-१२, एनएच-१२ ए के साथ राजमार्ग के रूप में दमोह-सागर और अमरकंटक एक्सप्रेस-वे को ध्यान में रखकर कोई योजना नहीं बनी
– थोक व्यवसाय, ट्रांसपोर्ट की योजना न होने से ट्रैफिक का दबाव पुराने शहर पर पड़ रहा है
– शहर मेें टिम्बर, तेल-घी आदि कारोबार से हर समय अग्नि हादसों का खतरा रहता है
– जगह की अनुपलब्धता से भी शहर को रोजगार देने वाली योजनाएं नहीं आ पा रही हैं
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