जबलपुर में सड़कें बदहाल, सफाई व्यवस्था पटरी से उतरी, जलसंकट की सुनाई देने लगी आहट
जबलपुर
Updated: February 26, 2022 07:23:16 pm
जबलपुर। शहर की सड़कें बदहाल हैं। सफाई व्यवस्था बेपटरी है। जलसंकट की आहट सुनाई देने लगी है। विकास कार्यों पर लगभग बे्रक लगने जैसी स्थिति है। महापौर और पार्षदों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद से नगर निगम से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था मानो लावारिस हो गई है। जबलपुर में सत्तापक्ष के पूर्व पार्षद खुलकर कुछ नहीं बोलते। लेकिन, विपक्ष वाले जोर-शोर से कह रहे हैं कि निगम के अफसरों की मनमानी सिर चढ़कर बोल रही है। उनका कहना है कि जब वे पार्षद थे, तो अफसर और कर्मचारी दबाव में रहते थे। लेकिन, अब वे फंड का रोना रोकर विकास कार्य के किसी भी प्रोजेक्ट को निरस्त कर देते हैं। यह भी आरोप है कि सरकारी खर्चे में किसी तरह की कटौती नहीं की जा रही है। लेकिन, काम की बात आती है, तो पल्ला झाड़ लिया जाता है। सफाई व्यवस्था में तो एक-एक काम के लिए दो से तीन स्तरों पर टेंडर दिए जा रहे हैं। इसके बाद भी सफाई व्यवस्था चौपट है।
वित्तीय अधिकार नहीं होने का असर
पूर्व पार्षदों के दर्द हजार हैं। उन्हें लगा था कि 'पूर्वÓ लगने के कुछ दिन बाद चुनाव हो जाएंगे। नई नगर सरकार बनने के बाद वित्तीय अधिकार मिल जाएंगे। लेकिन, चुनाव की तारीखें आगे बढ़ते जाने से उनका दर्द बढ़ता जा रहा है। कुछ महीने पहले ग्राम पंचायतों में कुछ वित्तीय अधिकार दे दिए गए थे। इसलिए वहां के काम की गाड़ी चल निकली है। लेकिन, नगरीय जनप्रतिनिधियों को इससे वंचित रखा गया है। इसके चलते स्थानीय लोग पूर्व पार्षदों के पास समस्याओं के निराकरण के लिए पहुंचते हैं, उन्हें बेचारगाी का अहसास होता है। कुछ तो यह भी कहते हैं कि पहले उनके एक बार कहने से ही काम जाते थे। अब अफसरों से मिलने के लिए समय नहीं दिया जाता। कर्मचारी भी मिलने से आनाकानी करते हैं। अतिक्रमण हटाने के नाम पर भाई-भतीजावाद चल रहा है। सफाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। पूर्व पार्षद क्षेत्र के लोगों को समझाकर बात सम्भाल रहे हैं।
गजब की मनमानी है
पूर्व पार्षद राजेश सोनकर का कहना है कि निगम के अफसर इस समय गजब की मनमानी कर रहे है। उनका कहना है जब पार्षद के वित्तीय अधिकार प्राप्त थे, तब क्षेत्र में पुलिया निर्माण, सड़क निर्माण, सफाई व्यवस्था के लिए आम लोगों को परेशान नहीं होना पड़ता था। अफसरों को पता है कि अब जनप्रतिनिधि उन पर पहले जैसा दबाव नहीं बना सकते। इसलिए वे फंड का रोना रोकर ज्यादातर प्रोजेक्ट निरस्त कर देते हैं। सोनकर सवाल करते हैं कि सफाई व्यवस्था की ऐसी बदहाल व्यवस्था आखिर क्यों है? जबकि, संविदा पर सफाई कर्मियों की भर्ती की जा रही है। उन्हें मॉनीटरिंग करने के लिए अफसर गाडिय़ों में फर्राटा भर रहे हैं। अपने खास लोगों को उपकृत किया जा रहा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर रुपयों की होली खेली जा रही है। विकास कार्य बिना प्लानिंग के हो रहे हैं। पाइप लाइन बिछाई जाती है। कुछ दिन बाद फिर से उखाड़ी जाती है। कहीं गड्ढे में सड़क है, तो कहीं सड़क में गड्ढे हैं। पता नहीं चल रहा कि आखिर शहर में होने वाले काम किसके दिमाग से किए जा रहे हैं?
मजबूरी में टले हैं चुनाव
विपक्षी दलों के पूर्व पार्षदों का दर्द तो खुलकर सामने आ जाता है। लेकिन, सत्तापक्ष वाले सब कुछ सामान्य बताते हैं। उनका कहना है कि चुनाव मजबूरी में टले हैं। लेकिन, क्षेत्र के सभी काम पहले की तरह हो रहे हैं। पूर्व पार्षद मनप्रीत सिंह काके आनंद कहना है कि निगम से उनका कोई काम नहीं रुकता। जो काम जरूरी होता, वह हो ही जाता है। वे अभी भी पहले की तरह क्षेत्र में नजर रखते हैं। किसी भी तरह की समस्या का निराकरण करा दिया जाता है। हालांकि, सत्तापक्ष के भी कुछ पूर्व पार्षदों ने दबी जुबान में माना कि निगम के अफसर अब पहले तरह की उनकी बातें नहीं सुनते। कर्मचाारी भी आनाकानी कर जाते हैं। चुनाव जल्द होने की पैरोकारी हर तरफ से की जा रही है। सामाजिक संगठनों का भी कहना है कि नगरीय चुनाव नहीं होने का असर तो पड़ा है। क्योंकि, क्षेत्रीय लोगों की बातें कौन निगम मुख्यालय तक पहुंचाए, यह तय होना जरूरी होता है। छोटी-छोटी समस्याओं के लिए लोग स्थानीय पार्षद के पास तो पहुंच सकते हैं। अफसरों के पास पहुंचना उनके लिए आसान नहीं होता।
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