आचार संहिता के बाद दिख रहे बदलाव
बिजली के खंभों में अवैध तरीके से लगाए जाने वाले फ्लैक्स-बैनर जब्त कर लिए गए।
सरकारी संपत्तियों और भवनों की दीवारों पर विज्ञापन और राजनीतिक नारे लिखने वालों पर एफआइआर।
कार पर ब्लैक फिल्म चढ़ाकर घूमने वाले, पदनाम पट्टिका लगाकर रौब जमाने वालों पर जुर्माना।
लंबे अरसे से फरार वारंटियों की धरपकड़। थोक में हिस्ट्रीशीटरों का जिला बदर।
जिले के किसी भी कोने में कोई गड़बड़ी की सूचना पर तत्काल संबंधित विभाग की जांच और कार्रवाई।
अफसरों की वर्किंग स्टाइल में होता है फर्क
&कभी कोई दबाव नहीं होता। हर अधिकारी की अपनी वर्र्किंग स्टाइल होती है। उसका मैसेज चला जाता है। विधि अनुरूप कार्य का ज्ञान है तो आचार संहिता लागू हो अथवा सामान्य दिन हो, गड़बड़ी करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई में कोई परेशानी नहीं। यह जरूर है कि कुछ लोग सामान्य दिनों में पॉलिटिकली बंधा हुआ महसूस करने लगते हैं। इन्हें किसी राजनैतिक दखल रखने वाले व्यक्ति पर कार्रवाई में शिकायत, ट्रांसफर की आशंका रहती है, लेकिन अधिकारी नियमों तहत निष्पक्ष कार्रवाई करें तो उसका खौफ हमेशा रहता है।
अशोक कुमार शुक्ला
रिटायर्ड एडीशनल एसपी
सीधे चुनाव आयोग को करते हैं रिपोर्ट
&सरकारी अधिकारियों पर कामकाज के दौरान कई तरह के दबाव होते हैं। लोग अपनी पहचान के अनुसार किसी के बचाव और किसी के खिलाफ कार्रवाई के लिए एप्रोच करते हैं, लेकिन आचार संहिता लागू होने पर अधिकारी अधिक दबाव में नहीं रहते। राजनीतिक और अन्य तरह का हस्तक्षेप नहीं रहता। वे सीधे चुनाव आयोग को रिपोर्ट करते हैं। फिर चाहे बड़े नेता, रसूखदार के खिलाफ वारंट हो या कोई शिकायत उसकी गिरफ्तारी में देर नहीं होती है। इसकी रिपोर्ट भी हर दिन आयोग को अपडेट करना होता है, तो कार्रवाई तेजी से होती है।
पीएस ग्रेवाल
रिटायर्ड पुलिस इंस्पेक्टर