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दिन अब होने लगेंगे बड़े, ठंड में धीरे-धीरे होगी छू-मंतर

locationजबलपुरPublished: Jan 14, 2020 09:19:41 pm

– उत्तरायन का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायन में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।

Makar Sankranti 2020: 90 साल बाद मकर संक्रांति पर बन रहा ये दुर्लभ योग, इन लोगों के लिए होगा विशेष फलदायक, दान देने से मिटेंगे सारे कष्ट

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जबलपुर. कुछ लोग परंपरा अनुसार 14 तारीख को ही मकर संक्रांति मनाते हैं तो कुछ लोग पंचांग अनुसार 15 जनवरी को मकर संक्रांति को मनाते हैं। ज्योतिष के अनुसार बात करें तो मकर संक्रांति तब मनाई जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है और ज्योतिर्विद जनार्दन शुक्ला के अनुसार मंगलवार की शाम 7.55 बजे सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस कारण मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को होगा। इसलिए इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। क्योंकि माना जाता है की जब भी सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उसके दूसरे दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है।
ऋतु परिवर्तन और मांगलिक कार्यों का शुभारंभ
मकर संक्रांति में सूर्य उत्तरायण हो गए, 18 जनवरी से मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। जबकि, ऋतु परिवर्तन में हेमंत से शिशिर ऋतु का प्रारम्भ होगा। 30 जनवरी को बसंत ऋतु शुरू होने तक शिशिर ऋतु रहेगा। यह मौसम का संक्रमण काल है। धार्मिक के साथ ही तिल का वैज्ञानिक महत्व है। तिल के लड्डू खाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पोषक तत्व मिलते हैं।
मकर संक्रांति का महत्व
सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। यह परिवर्तन एक बार आता है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए अधिक है कि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन देवताओं का दिन माना जाता है। उत्तरायन का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायन को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायन में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।
मकर संक्रांति पर दान,स्नान के लिए हैं विशेष
मान्यता है कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि को होगा, तो इस स्थिति में पुण्यकाल अगले दिन स्थानांतरित हो जाता है। शास्त्रों में उदय काल (सूर्योदय) को ही महत्व दिया गया है।
इधर, तिलसंकष्टी पर सोमवार को महिलाओं ने निर्जला व्रत रखा। प्रथम पूज्य भगवान गणेश की स्तुति की। तिल के लड्डू का भोग लगाया। संतान की दीर्घायु और सुख समृद्धि की कामना की। व्रतधारी महिलाएं गणेश मंदिरों में पूजन के लिए पहुंची। विशेष योग में तिलसंकष्टी होने से मंदिरों में विशेष पूजन अर्चन का क्रम चला। दिन भर अनुष्ठान के बाद शाम चंद्रमा को अघ्र्य देने के साथ महिलाओं का व्रत पूरा हुआ। ज्योतिषविद जर्नादन शुक्ला के अनुसार वर्ष में चार चतुर्थियों में महत्वपूर्ण तिलसंकष्टी चतुर्थी होती है। माघ मास नक्षत्र की ये तिलसंकष्टी चतुर्थी विशेष होती है। चतुर्थी को भगवान गणेश की साधना फलदायी होती है। सोमवार को व्रतधारी महिलाओं ने गणेश स्तुति के साथ ही मंदिरों में जाकर भगवान के दर्शन किए। इस अवसर पर ग्वारीघाट स्थित सिद्ध गणेश मंदिर, रतननगर के सुप्तेश्वर गणेश मंदिर, एमपीइबी कॉलोनी स्थित श्रीगणेश मंदिर में विशेष पूजन हुआ। पूरे दिन दर्शन करने के लिए श्रृद्धालु पहुंचे। सुप्तेश्वर मंदिर में शाम को महाआरती की गई।
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