नि:शुल्क विधिक सहायता विषयक संगोष्ठी में अपने विचार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजेन्द्र मेनन ने साक्षरता पर जोर दिया। उन्होंने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति बतौर पदस्थ रहने के दौरान जस्टिस अंजुलि पालो की सदस्यता वाली खंडपीठ के समक्ष एक बंदी प्रत्यक्षीकरण की सुनवाई संबंधी संस्मरण सुनाया। इसके जरिए उन्होंने साफ किया कि यदि साक्षरता पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए तो भटकी हुई नाबालिग या बालिग भी अपने परिवार की तरफ लौट सकती है। ठीक वैसे ही जैसे उस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान भ्रमित बीए (इंग्लिश लिटरेचर) की छात्रा माता-पिता के साथ लौट गई।
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर जताई चिंता
हाईकोर्ट की जस्टिस नंदिता दुबे ने बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को लेकर चिंता जाहिर करते हुए महिला अधिवक्ताओं के महासंघ कंफेडरेसी ऑफ स्टेट वूमेन लॉयर्स (सीएसडब्ल्यूएल) से अपेक्षा की कि वह समाज में जन-जागरुकता अभियान के साथ-साथ स्कूलों में जाकर 14 से 18 साल तक की बच्चियों को अपने भविष्य के प्रति सचेत करें। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति एसके पालो ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए अपनी बात रखी।
ये रहे मौजूद
महिला अधिवक्ताओं के महासंघ कंफेडरेसी ऑफ स्टेट वूमेन लॉयर्स (सीएसडब्ल्यूएल) की अध्यक्ष अधिवक्ता नीलम गोयल, गीता यादव, हाईकोर्ट बार के कोषाध्यक्ष ओपी अग्निहोत्री सहित बड़ी संख्या में अधिवक्ता मौजूद रहे।