यह है मामला
शराब ठेकेदारों की याचिका में कहा गया है कि सरकार कोरोना संक्रमण काल के दौरान शराब दुकानें खोलने की अनुमति दे रही है। लेकिन, नियम इतने ज्यादा और कठोर बना दिए हैं कि शराब ठेकेदारों को भारी नुकसान हो रहा है। शराब ठेकेदार सरकार को निश्चित राजस्व देने की हालत में भी नहीं है। वहीं हाल ही में राज्य सरकार ने नीतिगत संशोधन करते हुए शराब ठेकेदारों पर दबाव बनाने की कोशिश की है। 23 मई को राज्य सरकार ने शराब नीति में संशोधन कर शराब ठेकेदारों की ठेका अवधि बढ़ी दी थी, लेकिन बिड की रकम कम नहीं की। इसके साथ ही शराब दुकान बंद करने पर शराब ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई करते हुए लाइसेंस निरस्तीकरण और वसूली की कार्रवाई भी की गई।
पूर्व सॉलीसिटर जनरल मुकुल रोहतगी, वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ, अधिवक्ता संजय वर्मा, राहुल दिवाकर, संजय अग्रवाल ने वीसी के जरिए ठेकेदारों की ओर से तर्क दिया कि मई के पहले सप्ताह में सरकार ने शराब दुकानों को खोलने की मंशा जाहिर की, लेकिन शराब ठेकेदार इसके लिए तैयार नहीं हुए। अधिकारियों ने बैठकों के दौरान ठेकेदारों की कुछ मांगे मानते हुए ठेकों की राशि गत वर्ष के रेट अर्थात इस वर्ष से 25 फीसदी कम करने की अनुशंसा की। लेकिन, मंत्रीसमूह ने इसे नहीं माना और सरकार नई नीति ले आई। तर्क दिया कि अनुबंध पूर्ण होने के पूर्व नई नीति के तहत तय की गई नई शर्तों को नए प्रस्ताव के रूप में देखा जाना चाहिए। कोरोना संक्रमण के चलते निर्मित परिस्थितियों के तहत पुरानी दरों पर निविदाएं निष्पादित करना ठेकेदारों के लिए असम्भव ही नहीं, तगड़ा नुकसानदायक है। राज्य सरकार की ओर से सॉलीसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता, महाधिवक्ता पुरुषेंद्र कौरव ने सरकार की नई नीति बनाने की कार्रवाई को उचित बताया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीन दिन के अंदर सरकार की नई नीति से सहमत ठेकेदारों को अपना शपथपत्र पेश करने के निर्देश दिए।