scriptदुनिया में नहीं देखा होगा जबलपुर जैसा जगराता | Dussehra festival:Not seen in the world will Jabalpur as Jagrata | Patrika News

दुनिया में नहीं देखा होगा जबलपुर जैसा जगराता

locationजबलपुरPublished: Oct 08, 2019 01:01:52 am

Submitted by:

santosh singh

Dussehra festival:यूं ही नहीं कहा जाता इसे धर्मनगरी, कोलकाता की दुर्गा प्रतिमा, मैसूर का दशहरा और दिल्ली के रामलीला का आनंद एक साथ उठाना हो तो चलें आएं जबलपुर

नगर की महारानी सुनरहाई-नुनहाई

नगर की महारानी सुनरहाई-नुनहाई

जबलपुर। दुनिया में कहीं नहीं देखा होगा ऐसा जगराता (Jagrata)। जबलपुर की महारानी नगर सेठानी और नगर जेठानी देवी का ऐसा दरबार भी कहीं नहीं देखा होगा आपने। नहीं देखा तो जरूर देखें एक बार। आखिर क्यों लाखों की संख्या में लोग सडक़ों पर मां का दरबार देखने उमड़ पड़ते हैं। कोलकाता की दुर्गोत्सव से बढकऱ यहां दुर्गा प्रतिमाएं आश्चर्यचकित करेंगी। मैसूर का दशहरा पर्व (Dussehra festival) संस्कारधानी के आगे फीका लगेगा, तो दिल्ली की रामलीला से कम नहीं जबलपुर में गोविंदगंज और गढ़ा की रामलीलाएं। 50 से 60 फीट ऊंचे रावण पुतला दहन भी संस्कारधानी जैसा कहीं नहीं देखने को मिलेगा।
नगर सेठानी का अनूठा रहस्य
शहर में दुर्गा उत्सव का अनूठा इतिहास है। यहां एक से बढकऱ एक दुर्गा प्रतिमाएं बरसों से स्थापित की जाती है। कुछ तो ऐसी भी हैं जिनकी स्थापना अंग्रेजी शासनकाल से ही की जाती हैं। और खास बात ये कि तब से लेकर अब तक इनके स्वरूप में तनिक भी परिवर्तन नही आया। माता की ये प्रतिमाएं करोड़ों रूपए के जेवर पहनती हैं। जिस स्थान पर ये प्रतिमाएं स्थापित होती हैं वहां की धूल में भी सोना-चांदी पाया जाता है। इनके जेवरों से अनूठी आभा निकलती है जो कि अपने आप में रहस्यात्मक और आकर्षित करने वाली है।

नगर की महारानी सुनरहाई-नुनहाई
दुर्गा उत्सव की शुरूआत में माता का स्वरूप जैसा था आज भी वैसा ही है। इन्हें नगर की सेठानी, महारानी के नाम से जाना जाता है। इनके जेवर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र हर साल ही होते हैं। ये आधा क्विंटल से अधिक के गहने धारण करती हैं। जिनमें सोना-चांदी ही नही हीरा-माणिक और मोती के जेवर भी शामिल होते हैं। इनके वस्त्र आभूषण पूरी तरह बुंदेली, आदिवासी संस्कृति के समान ही होते हैं।
कुछ ऐसे होते हैं इनके जेवर
दोनों प्रतिमाओं का आज भी पारंपरिक आभूषणों से शृंगार किया जाता है। इनमें माता के गले में बिचोहरी, पांजणीं, मंगलसूत्र, झुमका, कनछड़ी, सीतारामी तीन, रामीहार दो, आधा दर्जन हीरों से जडि़त नथ,बेंदी, गुलुबंध, मोतियों की माला। हाथों में गजरागेंदा, बंगरी, दोहरी, ककना, अंगूठी, बाजुबंध, कमरबंध, लच्छा, पैरों में पायजेब, तोड़ल, बिजौरीदार,पैजना और पायल शामिल है। जिनकी कीमत करोड़ों रुपए है।
डेढ़ सौ साल का इतिहास
माता की तलवार, छत्र, चक्र, आरती थाल भी चांदी से बनी हैं। माता के वाहन शेर को सोने का मुकुट, हार, चांदी की पायल आदि से सुशोभित किया जाता है। इनका सिंहासन भी विशेष सज्जा लिए होता है। सुनरहाई में आठ फीट की प्रतिमा जहां स्थापना के डेढ़ सौ साल पूरे कर चुकी है। वहीं नुनहाई की सात फीट की प्रतिमा स्थापना के 147 साल हो चुके हैं। इस वर्ष भी माता का स्वरूप अत्यंत ही मनोहारी देखने मिलेगा।
यहां की धूल भी कीमती
सुनरहाई शहर का मुख्य सराफा बाजार माना जाता है। नुनहाई भी लगा हुआ ही है। जिसकी वजह से कहा जाता है कि यहां की धूल में भी सोना-चांदी मिलता है। हालांकि परंपरागत रूप से अब भी यहां मजदूर सुबह-शाम धूल को समेटेते हुए दिखाई देते हैं।

mata ka jagrata
IMAGE CREDIT: patrika

ये है देश की सबसे पुरानी रामलीला
संस्कारधानी जबलपुर में जब रामलीला की शुरुआत हुई थी तब आयोजन समिति मिट्टी तेल के भभके की रोशनी में रामलीला का मंचन कराती थी। इसके बाद पेट्रोमैक्स की रोशनी में रामलीला का सजीव मंचन होने लगा था। 67 साल बाद सन् 1932 में जबलपुर में बिजली और पहली बार रामलीला मंचन बल्ब की रोशनी में किया गया। लाइट की रोशनी में मंचन देखने का लोगों में इतना उत्साह था कि मंच के पास आने तक के लिए लोगों को जगह नहीं मिलती थी।
तीन चार दिन का डेरा
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के प्रति लोगों की आस्था कही जाए या फिर मंचन देखने का उत्सा कि लोग यहां तीन से चार दिन तक डेरा डाले रहते थे। रामलीला देखने के लिए क्षेत्रीय लोग शाम से ही अपने घरों से बोरियां, टाट व दरी आदि मंच के आस-पास बिछा आते थे। ताकि मंचन के समय उन्हें आसानी से बैठने की जगह मिल जाए।
ऐसे हुई शुरुआत
मिलौनीगंज में डल्लन महाराज की प्रेरणा से रामलीला की शुरूआत हुई। रेलमार्ग न होने से शहर का व्यापार मिर्जापुर से होता था, जो कि मिर्जापुरा रोड भी कहलाता था। इसी मार्ग से बैलगाडिय़ों में माल लाया व ले जाया जाता था। इन्हीं व्यापारियों में मिर्जापुर के व्यापारी लल्लामन मोर जबलपुर आते रहते थे। उनके करीबी लोगों में डल्लन महाराज सबसे ऊपर थे। उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए रामलीला मंचन की बात रखी। जिस पर डल्लन महाराज ने खुलकर सहयोग दिया। उनके साथी रज्जू महाराज ने भी विशेष रुचि ली और सन् 1865 में पहली बार छोटा फुहारा स्थित कटरा वाले हनुमान मंदिर के सामने गोविंदगंज रामलीला का मंचन हुआ। रामलीला मंचन का उद्देश्य भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र से लोगों को प्रेरणा देना एवं सामाजिक व धार्मिक कुरीतियों में सुधार लाना था।

Dussehra festival in jabalpur
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दशहरा और रावण के पुतले को देखते आते हैं दूर-दूर से लोग
अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा समारोह भी जबलपुर में पूरी भव्यता से मनाया जाता है। सदर, पंजाबी, रांझी, अधारताल, विजय नगर, गढ़ा में अगले तीन दिन तक दशहरा की धूम रहेगी। पूरे प्रदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाले पंजाबी दशहरे का इस वर्ष भी भव्य आयोजन हुआ। इस बार इसका आयोजन ग्वारीघाट स्थित आयुर्वेद कॉलेज मैदान में किया गया। 69वें पंजाबी दशहरे में इस बार रावण और कुंभकरण की 55 फीट ऊंचे पुतले बनाए गए। पंजाबी दशहरे में पूरे देश से लोग जबलपुर पहुंचते हैं। नवमी के मौके पर हर बार पंजाबी हिन्दू एसोसिएशन द्वारा इसका आयोजन किया जाता है। इस खास मौके पर रंगारंग कार्यक्रम की प्रस्तुति भी देखने को मिली. जबकि आतिशबाजी ने सभी दर्शकों का उत्साह बढ़ाया।

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